दिल्ली के करोलबाग इलाके में एक फैक्ट्ररी में आग लगने और उसमें चार लोगों की मौत की घटना से एक बार फिर यही साबित हुआ है कि नियम-कायदों पर अमल को लेकर सख्ती बरते जाने के तमाम दावों की हकीकत इसके उलट है। सोमवार को दोपहर में कपड़े की एक फैक्ट्ररी में अचानक लगी आग कुछ ही देर में सब तरफ ऐसे फैल गई कि वहां से लोगों को निकलने का मौका तक नहीं मिला। आपात स्थिति में बाहर निकलने के रास्ते इस कदर बाधित थे कि उसमें चार लोग फंस गए और झुलस कर उनकी मौत हो गई। मुख्य दरवाजे के अलावा एक अन्य दरवाजा बेहद संकरा था और उसमें से निकलने की कोशिश में एक व्यक्ति बीच में ही फंस गया और बाकी इसी वजह से बाहर नहीं भाग सके। शुरुआती जांच के मुताबिक दाग छुड़ाने वाले किसी ज्वलनशील रसायन के आग पकड़ लेने की वजह से यह हादसा हुआ। कारण चाहे जो हो, इससे एक बार फिर उसी लापरवाही का पता चलता है, जिसके चलते दिल्ली और दूसरी जगहों पर ऐसे हालात में चलने वाली फैक्ट्रियों में अक्सर हादसे होते हैं और उसमें कामगारों को अपनी जिंदगी गंवानी पड़ती है।

अब पुलिस का कहना है कि वह फैक्ट्ररी वहां गैरकानूनी तरीके से चलाई जा रही थी और बचाव के कोई इंतजाम नहीं थे। सवाल है कि ज्यादातर जगहों पर किसी कोने या मकान के भीतर चलने वाली कोई भी गतिविधि अगर पुलिस पता लगा लेती है और उस पर जरूरी कार्रवाई करती है तो करोलबाग जैसे व्यावसायिक इलाके में स्थित एक इमारत में रोजाना और नियमित तरीके से चलने वाली फैक्ट्ररी और वहां की हालत से पुलिस अनजान कैसे रही! ऐसे हर हादसे में कारण आमतौर पर एक जैसे ही होते हैं और प्रशासन की ओर से हर बार दावा यही होता है कि वह भविष्य में सख्ती बरतेगी। मगर कुछ समय बाद फिर उसी तरह का हादसा सामने आ जाता है। करोलबाग के उस इलाके के अलावा और भी ऐसी जगहें होंगी जहां इसी तरह गैरकानूनी और जानलेवा जोखिम के बीच फैक्ट्रियां चलाई जा रही होंगी। पर शायद ही कभी उन फैक्ट्रियों की वैधता की जांच करने और किसी भी अचानक हादसे की स्थिति में बचाव के आपात इंतजाम सुनिश्चित करने की कोशिश होती है। ऐसे आरोप अक्सर सामने आते रहे हैं कि कई बार गैरकानूनी तरीके से चलने वाली फैक्ट्रियों के बारे में जानते-बूझते भी उनकी अनदेखी की जाती है।

आखिर अवैध तरीके से खतरनाक हालात में फैक्ट्रियों को चलने देने और उनकी ओर से पुलिस या प्रशासन के आंखें मूंद लेने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? क्या ऐसी लापरवाहियों और बेईमानियों की वजह से ही फैक्ट्ररी मालिकों के भीतर नियम-कायदों को ताक पर रखने की हिम्मत नहीं आती है? छोटी और अपर्याप्त जगह में कपड़े तैयार करने की फैक्ट्ररी चलने देने से पहले प्रशासन और संबंधित महकमों ने क्या वहां की सुरक्षा व्यवस्था और सुविधाओं की जांच की थी? व्यावसायिक इलाकों में जाकर वहां आपात स्थिति में आग लगने से बचने के पूर्व इंतजाम, आग फैल जाने की स्थिति में सुरक्षा के उपायों का समय-समय पर निरीक्षण करने और नियमों के उल्लंघन पर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी किसकी है? आखिर किन वजहों से ऐसी ज्यादातर फैक्ट्रियों को बेहद खतरनाक और जानलेवा हालात में चलने की छूट दे दी जाती है? यह बेवजह नहीं है कि फैक्ट्रियों में कभी बिजली की शॉर्ट सर्किट से तो कभी किसी अति ज्वलनशील पदार्थ की वजह से आग लगती है और वहां आए कामगारों को अपनी रोजी-रोटी की उम्मीद की कीमत अपनी मौत से चुकानी पड़ती है।