उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में सोमवार को गाय के नाम पर जो घटना सामने आई, वह समूचे देश को चिंता में डालने वाली है। यह कल्पना भी दहला देने के लिए काफी है कि गोहत्या की अफवाह के बाद लोग इस कदर अराजक हो गए कि उन्होंने इस मसले पर पुलिस के कानूनी कार्रवाई करने के किसी भी आश्वासन को मानने से इनकार कर दिया। समझाने की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं और लोगों ने पहले पुलिस पर पत्थरबाजी की, चौकी में आग लगा दी, वाहन फूंक डाले और एक इंस्पेक्टर की गोली मार कर हत्या कर दी। यही नहीं, गोली मारने के बाद भी कुछ लोगों ने उस पुलिस इंस्पेक्टर को बेरहमी से पीटा। एक अन्य युवक की भी गोली लगने से मौत हो गई। ताजा घटना के बाद जिन कुछ लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, उनमें से एक मुख्य आरोपी बजरंग दल से जुड़ा हुआ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस की ओर से कार्रवाई के आश्वासन के बाद मामला शांत हो गया था, लेकिन बाहर से आए बजरंग दल के लोगों ने हिंसा शुरू कर दी। सवाल यह भी है कि अगर लोग गोहत्या की आशंका पर विरोध जता रहे थे, तो उनके पास बंदूक या पिस्तौल जैसे हथियार क्यों मौजूद थे!

ताजा घटना में एक अहम पहलू यह भी है कि भीड़ के हमले में मारे गए इंस्पेक्टर ने दादरी में गोमांस रखने के शक में भीड़ के हाथों मार डाले गए मोहम्मद अखलाक में मामले की शुरुआती जांच की थी। इसलिए इस घटना की जांच में यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि क्या भीड़ के हाथों हुई इस हत्या की जड़ में कोई सुनियोजित साजिश है! ऐसी प्रवृत्तियों और इन्हें अंजाम देने वालों के प्रति आंखें मूंदे रखने का नतीजा अंतिम तौर पर यही सामने आना है कि कानून-व्यवस्था बहाल रखने के मामले में सरकार और प्रशासन को नाकाम मान लिया जाएगा। करीब पांच महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ की हिंसा पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की थी कि लोकतंत्र में भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती। अदालत की इस टिप्पणी पर अमल की जिम्मेदारी सरकारों की है। सरकार और प्रशासन को ही तय करना होगा कि वह भीड़ को लोकतंत्र पर हावी न होने देने के लिए क्या कदम उठाती है। पर ऐसा लगता है कि सरकारों की नजर में यह कोई इस तरह की समस्या नहीं है जिस पर तत्काल कोई सख्त पहलकदमी की जाए। यही वजह है कि आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जिनमें किसी आधारहीन बात या अफवाह को मुद्दा बना कर लोग इकट्ठा हो जाते हैं और बिना हिचक किसी निर्दोष को पीट-पीट कर मार डालते हैं।

विडंबना यह है कि हत्या की ऐसी बहुत कम घटनाओं में जिम्मेदारी तय हो पाती और दोषियों को सजा मिल पाती है। शायद यही वजह है कि भीड़ में तब्दील हो जाने वाले लोग बिना किसी डर के किसी को मार डालते हैं। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है और समूचे देश और समाज को इसका दीर्घकालिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि हिंसक भीड़ में तब्दील हो चुके लोगों के विकास की दिशा सकारात्मक नहीं हो सकती। अगर कोई भीड़ विध्वंस के रास्ते पर आगे बढ़ती है, तो इससे पैदा आग में उसे खुद भी झुलसना पड़ता है।