किसी संस्थान में पढ़ाई किए बगैर वहां की डिग्री हासिल करने और उसके इस्तेमाल से किस स्तर की फजीहत और असुविधा पैदा हो सकती है, यह डूसू यानी दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष पद से हटाए गए अंकिव बसोया के मामले से समझा जा सकता है। समस्या केवल फजीहत और असुविधा तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे समझने का मौका मिलता है कि इस तरह फर्जी डिग्री हासिल करने वाले देश भर में न जाने कितने लोगों को धोखा देते और उसका अनैतिक और गैरकानूनी फायदा उठाते रहते हैं। गौरतलब है कि अंकिव बसोया ने तमिलनाडु के तिरुवल्लुवर विश्वविद्यालय से हासिल स्नातक प्रमाण-पत्र के आधार पर दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर में दाखिला लिया था। वह एबीवीपी यानी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का सदस्य भी था और इस नाते उसने डूसू का चुनाव लड़ा और अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की थी। हालांकि चुनाव के दौरान ही उसकी डिग्री पर सवाल उठे थे, लेकिन तब उस शिकायत पर गौर करना जरूरी नहीं समझा गया। जब खुद तिरुवल्लुवर विश्वविद्यालय ने साफ कर दिया कि अंकिव की डिग्री फर्जी है, तब जाकर मामले ने तूल पकड़ा। पर तब भी उस डिग्री की जांच और समय पर फैसला लेने में टालमटोल की गई।
अब जब सारी हकीकत से पर्दा उठ गया है तब अंकिव को मजबूरन अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा है और कहने के लिए एबीवीपी ने भी उसे निलंबित कर दिया है। पर सवाल यह है कि जब सबसे पहले डिग्री के फर्जी होने के तथ्य पेश किए गए थे, तब विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर एबीवीपी ने कोई ठोस फैसला करने में देरी क्यों की! गौरतलब है कि लिंगदोह समिति की सिफारिशों के मुताबिक दो महीने से ज्यादा हो जाने के बाद अब वहां चुनाव नहीं हो सकते, इसलिए मौजूदा उपाध्यक्ष को ही प्रोन्नत करके अध्यक्ष घोषित किया जा सकता है। शायद यही वजह है कि अब बाकी विद्यार्थी संगठन यह आरोप लगा रहे हैं कि जांच में जानबूझ कर देरी की गई, ताकि डूसू का चुनाव दोबारा न कराना पड़े और छात्र संघ पर एबीवीपी का ही कब्जा बरकरार रहे। फिलहाल उपाध्यक्ष पद भी एबीवीपी के पास है। इसके बावजूद सच यह है कि इस समूचे मामले से एबीवीपी की विश्वसनीयता भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। समूचे मामले में एक चिंताजनक पहलू यह सामने आया है कि क्या दिल्ली विश्वविद्यालय में और भी ऐसे विद्यार्थी होंगे, जिन्होंने फर्जी डिग्री के आधार पर वहां दाखिला लिया होगा और उसकी वजह से कुछ सही डिग्री वाले ईमानदार विद्यार्थियों को वहां जगह नहीं मिल सकी होगी?
इससे इतर भी देश भर में समय-समय पर फर्जी डिग्री के मामले सामने आते रहे हैं। दरअसल, इस तरह से हासिल डिग्री के आधार पर कहीं दाखिला या नौकरी लेना केवल विश्वसनीयता के हनन का मामला नहीं है। इसके बाद वह इस डिग्री के सहारे किसी जिम्मेदार पद पर भी नियुक्त हो सकता है। इसके अलावा, आजकल एक नया चलन यह भी है कि ज्यादा पैसे खर्च करके किसी महंगे निजी संस्थान से डॉक्टरी या इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली जाती है। फर्जी तरीके के अलावा इस रास्ते डिग्री हासिल करने वाले लोगों की योग्यता क्या होती होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। जरूरत इस बात की है कि फर्जी डिग्रियों की जांच के लिए एक ऐसा सुव्यवस्थित तंत्र बने, जिससे जांच में लगने वाले वक्त का फायदा गलत लोग न उठा सकें।