आखिरकार दिल्ली सरकार ने अपनी वह घोषणा वापस ले ली, जिसके तहत सोमवार से पांच दिनों के लिए निजी गाड़ियों पर सम विषम फार्मूला लागू किया जाना था। पहले ऐसा लग रहा था कि शायद एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के रुख के चलते यह फार्मूला इस बार लागू न हो पाए, क्योंकि शुक्रवार को एनजीटी ने दिल्ली सरकार से कई सवाल पूछे थे और कहा था कि संतुष्ट होने पर ही वह सम विषम की अनुमति देगा। लेकिन शनिवार को उसने इजाजत दे दी, अलबत्ता इस शर्त के साथ किसी को भी इसमें छूट न दी जाए- न अफसरों को, न वीआइपी लोगों को, न दोपहिया चालकों को, न महिलाओं को। विचित्र है कि एनजीटी की हरी झंडी मिलने के बाद दिल्ली सरकार ने अपनी योजना वापस ले ली। ऐसा लगता है कि एनजीटी की लगाई हुई शर्त उसे भारी पड़ी। यों तो केजरीवाल सरकार ने अपना फैसला वापस लेने के पीछे दलील यह दी है कि वह महिलाओं की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं कर सकती। लेकिन सार्वजनिक परिवहन सेवाओं से आवाजाही करने वाली महिलाओं की तुलना में खुद कार या स्कूटर चलाने वाली महिलाओं की तादाद बहुत कम होगी। ऐसा लगता है कि दोपहिया चालकों समेत किसी को भी छूट न देने के एनजीटी के आदेश ने दिल्ली सरकार को परेशानी में डाल दिया होगा; उसे चिंता सताने लगी होगी कि कहीं उसके वोट न प्रभावित हों।

अगर पहले वोट बैंक देखा जाएगा, तो प्रदूषण से कभी भी निपटा नहीं जा सकेगा। यह एक ऐसा काम है जिसमें अप्रिय कदम उठाने होंगे और वोट बैंक की फिक्र छोड़नी होगी। एनजीटी की इजाजत के बाद अपना फैसला वापस लेकर केजरीवाल सरकार ने बता दिया है कि उसकी प्राथमिकता क्या है। पर्यावरण के बजाय वोट बैंक की चिंता का एक और उदाहरण पिछले दिनों देखने में आया था। दिवाली पर पटाखे पर पाबंदी के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को कुछ लोगों ने हिंदू-विरोधी आदेश बताने की कोशिश की थी, मानो हिंदुओं को प्रदूषण को लेकर परेशान नहीं होना चाहिए। हाल यह है कि कुछ दिनों से दिल्ली में सांस लेना दूभर है और वायु प्रदूषण के चलते मरीजों की तादाद में बीस फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। क्या ये तकलीफें भोग रहे लोग किसी एक धर्म या किसी एक वर्ग तक सीमित हैं? पर्यावरण सबकी चिंता का विषय होना चाहिए, चाहे वह किसी भी राजनीतिक विचारधारा को मानने वाला हो, किसी भी धर्म-संप्रदाय या किसी भी तबके का हो।

कोई सरकार पर्यावरण के मसले को गंभीरता से लेगी, तो उसे कठोर कदम भी उठाने होंगे। सम-विषम के साथ दिक्कत यह थी कि दिल्ली सरकार ने अब तक के अनुभवों को हिसाब में लिए बिना फार्मूला फिर लागू करने की घोषणा कर दी। इस फार्मूले की विसंगतियों का एक नमूना केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा एनजीटी के सामने पेश किया गया तथ्य है। दोनों संस्थाओं ने बताया कि दोपहिया वाहन अन्य वाहनों की तुलना में कहीं अधिक प्रदूषणकारी हैं और वाहनजन्य वायु प्रदूषण में उनका हिस्सा बीस फीसद है। एनजीटी ने इस पर भी नाराजगी जताई कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए जो ढेर सारे सुझाव उसने और सर्वोच्च न्यायालय ने दिए थे, उन्हें न अपनाकर दिल्ली सरकार सम विषम पर ही क्यों आमादा है? कम से कम अब तो दिल्ली सरकार को उन उपायों की तरफ ध्यान देना चाहिए।