मुंबई के एक शराबखाने में लगी आग में चौदह लोगों के मारे जाने और अनेक लोगों के गंभीर रूप से झुलस जाने के बाद बृहन्न मुंबई महानगर पालिका यानी बीएमसी ने अब अवैध निर्माण पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया है। नियम-कायदों की अनदेखी करने वाले करीब सवा तीन सौ अवैध निर्माण गिरा दिए और सात होटलों में तालाबंदी कर दी। हैरानी की बात है कि अवैध निर्माण को लेकर नगरपालिकाएं और दूसरे महकमे तभी क्यों सक्रिय होते हैं, जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है। मुंबई के जिस शराबखाने में आग लगी, उसमें नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाते हुए अवैध निर्माण किया गया था। उसमें न तो अग्निशमन की उचित व्यवस्था थी और न आपातकालीन स्थिति में निकास का समुचित प्रबंध था। ऐसा भी नहीं कि शराबखाने की इस मनमानी की जानकारी वहां की महानगरपालिका और निर्माण कार्यों पर निगरानी रखने वाले दूसरे महकमों को नहीं थी। इस शराबखाने के खिलाफ पहले कई बार नोटिस जारी किया जा चुका था। पर सवाल है कि उसकी मनमानियों के विरुद्ध कोई कड़ा कदम क्यों नहीं उठाया जा सका, किस आधार पर वह शराबखाना चलता रहा। जाहिर है, प्रशासन की मिलीभगत के बगैर ऐसा संभव नहीं हुआ होगा। अब शराबखाने के मालिकों के खिलाफ नोटिस जारी किया गया है, उन पर दंडात्मक कार्रवाई का मंसूबा बांधा जा रहा है। मगर इससे ऐसी मनमानियों पर कितनी लगाम कस पाएगी, दावा नहीं किया जा सकता।
व्यावसायिक और सार्वजनिक इमारतों में अवैध निर्माण, अग्निशमन और आपात निकासी जैसे पहलुओं पर नियम-कायदों की अनदेखी और फिर ऐसे हादसों का सिलसिला पुराना है। दिल्ली के उपहार सिनेमा हादसे को लोग अब तक नहीं भुला पाए हैं। हर शहर के पुराने व्यावसायिक इलाकों में आग और भगदड़ जैसी स्थिति में लोगों के सुगम और सुरक्षित निकास को लेकर प्राय: बड़े पैमाने पर अनदेखी होती है। नगरपालिकाएं और अग्निशमन विभाग नियम-कायदों की अवहेलना करने वाले भवन मालिकों को नोटिस देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेते हैं। यह भी छिपी बात नहीं है कि व्यावसायिक इमारतों के रसूखदार मालिक अपने प्रभाव से प्रशासनिक अधिकारियों को अवैध निर्माण और व्यावसायिक गतिविधियों में चल रही मनमानी के प्रति आंखें मूंदे रखने को रजामंद कर लेते हैं। मुंबई के कमला मिल परिसर में चल रहे शराबखानों में अवैध निर्माण और मनमानियों को लेकर भी यही हुआ। अब बृहन्न मुंबई महानगरपालिका के अधिकारियों-कर्मचारियों ने शहर के छह सौ से ऊपर रेस्तरां, ढाबों, मॉलों और होटलों का निरीक्षण कर तात्कालिक कार्रवाई शुरू कर दी है, पर इतने भर से व्यावसायिक ठिकानों में सुरक्षा इंतजामों के पुख्ता होने की उम्मीद नहीं की जाती।
कायदे से कोई भी भवन निर्माण या निर्माण में विस्तार करने से पहले बिजली, पानी, सीवर आदि से जुड़े महकमों की मंजूरी लेनी होती है। व्यावसायिक जगहों पर भीड़भाड़ का आकलन करते हुए गाड़ियां खड़ी करने की जगहों, आपात निकासी, बिजली, रसोई गैस आदि से हो सकने वाले हादसों आदि का ध्यान रखते हुए सुरक्षा इंतजाम करना जरूरी होता है। मगर बहुत कम जगहों पर सभी नियमों का ठीक से पालन हो पाता है। इसकी बड़ी वजह है कि ऐसी अनदेखियों की वजह से होने वाले हादसों के बाद भवन मालिकों के खिलाफ तो शिकंजा कसा जाता है, पर उन पर कड़ी नजर न रख पाने के लिए दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों को जवाबदेह नहीं बनाया जाता। जब तक प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की जाती, तब तक ऐसे हादसों पर अंकुश लगा पाना कठिन ही बना रहेगा।