जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठन सुनियोजित रणनीति के साथ काम करते हैं। मुश्किल है कि कुछ नई परिस्थितियां बनने के बाद जब भी इस समस्या के खत्म होने या उस पर काबू पाने की उम्मीद बंधती है, तो आतंकी कोई न कोई ऐसी हरकत कर देते हैं कि इस पर नए सिरे से काम करने की जरूरत पड़ जाती है। गौरतलब है कि किश्तवाड़ जिले के ऊपरी इलाके में आतंकवादियों ने दो ग्राम रक्षा गार्ड की गोली मार कर हत्या कर दी। खबरों के मुताबिक, पाकिस्तानी ठिकानों से संचालित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े ‘कश्मीर टाइगर्स’ ने इन हत्याओं की जिम्मेदारी ली है।

दरअसल, कश्मीर के हित का दावा करने वाले आतंकी संगठनों का असली मकसद भारत और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का माहौल बनाए रख कर अपने पाकिस्तानी आकाओं के सियासी हित को पूरा करना है। भारत ने इस हकीकत को ध्यान में रखते हुए हर स्तर पर आतंकवाद का खात्मा करने के लिए अभियान चलाया है। ताजा घटना में बारामूला में सुरक्षा बलों ने दो आतंकियों को मार गिराया। अब गृहमंत्री ने जल्दी आतंक-निरोधक राष्ट्रीय नीति लाने की बात कही है।

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पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग जिलों में सुरक्षा बलों या अप्रवासी मजदूरों पर लक्षित हमलों के जरिए चुनौती दी जा रही है। खासकर जम्मू-कश्मीर में सरकार बनने के बाद ऐसी घटनाओं में तेजी आई है। साफ है कि ऐसे लगातार हमलों के पीछे इससे उपजी हताशा काम कर रही है कि आतंकवाद की सियासत के बावजूद जम्मू-कश्मीर के लोगों की शांति की इच्छा और उसके लिए सक्रियता को कम नहीं किया जा सका है।

इसका उदाहरण वहां हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के बाद गठित सरकार है, जिसमें वहां के आम लोगों ने बढ़-चढ़ कर मतदान किया और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। आतंकवाद को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने वाले संगठनों और उनके पीछे खड़ी ताकतों के लिए यह निश्चित रूप से परेशान करने वाली बात थी। अब स्पष्ट है कि आतंकी हमलों में आम लोगों की जिस तरह हत्याएं की जा रही हैं, वह उसी से उपजी हताशा का नतीजा है।