दिव्यांग बच्चों और अन्य विशेष व्यक्तियों को उनके परिजन इसलिए आश्रय गृहों में भर्ती कराते हैं, कि प्रशिक्षण और बेहतर देखरेख से उनके जीने की राह आसान हो सकेगी। मगर, इंदौर के एक बाल आश्रम में हैजा के प्रकोप से कई बच्चों और दिल्ली में मानसिक रूप से दिव्यांग लोगों के आश्रय गृह में कई की मौत ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। आश्रय गृहों में दिव्यांगों का खास खयाल रखना तो दूर, उन्हें बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया नहीं हो पा रही हैं। मसलन, स्वच्छ पेयजल, संतुलित आहार, स्वच्छता, समय पर चिकित्सीय जांच आदि की माकूल व्यवस्था न होना।
विडंबना है कि जिन आश्रयों में दिव्यांगों की उचित देखरेख की उम्मीद की जाती है, वहां वे बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। इंदौर के बाल आश्रम में बच्चों की मौत की वजह हैजा बताई जा रही है, जो दूषित भोजन-पानी के कारण फैलता है। इंदौर के शासकीय बाल चिकित्सालय की अधीक्षक का कहना है कि बाल आश्रम की एक बच्ची को हाल में जब गंभीर हालत में अस्पताल में लाया गया तो तब वह उल्टी-दस्त और शरीर में पानी की कमी की समस्या से पीड़ित और कुपोषण का शिकार थी। चिकित्सकों की तमाम कोशिशों के बावजूद उसकी जान नहीं बचाई जा सकी।
जांच के दौरान इंदौर के आश्रम में क्षमता से अधिक बच्चों को भर्ती किए जाने, उनका चिकित्सीय रेकार्ड न रखे जाने और रखरखाव संबंधी गड़बड़ियों का खुलासा हुआ था। जांच रपट के बाद प्रशासन ने इस आश्रम के कुछ पदाधिकारियों की सेवाएं समाप्त कर दीं, लेकिन सवाल है कि क्या इससे समस्या पूरी तरह हल हो जाएगी? दिल्ली के आशा किरण आश्रय गृह में मौतों का मामला अब न्यायालय के समक्ष है। अदालत ने दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों को आश्रम में पानी की गुणवत्ता और साफ-सफाई व्यवस्था का निरीक्षण करने के निर्देश दिए थे।
अब दिल्ली सरकार के समाज कल्याण सचिव को निर्देश जारी कर स्थिति रपट देने को कहा है। जब तक आश्रय गृहों में भर्ती लोगों की समुचित देखरेख की जवाबदेही तय नहीं होती और जरूरी सुविधाओं के निरीक्षण की कारगर व्यवस्था नहीं की जाती, तब तक इनकी दशा सुधरने की उम्मीद धुंधली ही रहेगी।
