अमेरिका की ओर से भारत पर पच्चीस फीसद शुल्क लगाने की घोषणा ने न केवल भारतीय निर्यातकों की चिंता बढ़ा दी है, बल्कि इससे भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते को लेकर भी अनिश्चितताएं पैदा हो गई हैं। स्वाभाविक है कि इससे दोनों देशों को होने वाले नफा-नुकसान को लेकर विभिन्न स्तर पर आकलन भी शुरू हो गया है। इसमें दोराय नहीं कि अमेरिका के इस फैसले के पीछे भू-राजनीतिक परिदृश्य से भारत पर दबाव बनाने की रणनीति भी शामिल है, लेकिन इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इसका कुछ असर अमेरिका को खुद भी झेलना पड़ सकता है।
सवाल यह है कि भारत इस स्थिति से किस तरह निपटेगा? भारतीय निर्यातकों की चिंता भी वाजिब है, क्योंकि अमेरिकी शुल्क से भारत के निर्यात पर असर पड़ सकता है और अगर ऐसा हुआ तो उनका कारोबार प्रभावित होगा। यही वजह है कि वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के साथ बैठक में निर्यातकों ने सरकार से वित्तीय सहायता और किफायती ऋण की मांग की है।
भारत में ऋण पर ब्याज दरें आठ से बारह फीसद या उससे भी अधिक
बैठक में निर्यातकों ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में ऋण पर ब्याज दरें आठ से बारह फीसद या उससे भी अधिक होती हैं। जबकि प्रतिस्पर्धी देशों में ब्याज दर बहुत कम है। जैसे, चीन में केंद्रीय बैंक की दर 3.1 फीसद, मलेशिया में तीन, थाईलैंड में दो और वियतनाम में 4.5 फीसद है। साथ ही कहा गया कि अमेरिकी खरीदारों ने मांग को रद्द करना या रोककर रखना शुरू कर दिया है। ऐसे में अगर आने वाले दिनों में भारत के निर्यात कारोबार में बड़े स्तर पर गिरावट आई तो इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम होने लगेंगे।
यों सरकार ने अमेरिकी शुल्क से पैदा होने वाली संभावित दिक्कतों से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के साथ निर्यातकों की बैठक इन्हीं तैयारियों का हिस्सा है। कहा जा रहा है कि सरकार ने निर्यातकों से सुझाव मांगे हैं, जिन पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। इसके अलावा केंद्र सरकार निर्यातकों को समर्थन देने के लिए राज्यों के साथ बातचीत करने पर भी विचार कर रही है।
चमड़ा और परिधान निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी तीस फीसद से अधिक
माना जा रहा है कि अमेरिकी शुल्क का ज्यादा असर वस्त्र, रत्न एवं आभूषण, चमड़ा एवं जूते-चप्पल, रसायन और विद्युत एवं यांत्रिक मशीनरी उद्योग पर पड़ सकता है। भारत के चमड़ा और परिधान निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी तीस फीसद से अधिक है। व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि अगर शुल्क की वजह से अमेरिका में भारतीय वस्तुओं की मांग घटती है, तो निर्यात कारोबारियों को ब्रिटेन और जापान जैसे नए बाजार तलाशने होंगे। ऐसी स्थिति में ब्रिटेन के साथ हुआ भारत का मुक्त व्यापार समझौता फायदेमंद साबित हो सकता है।
वहीं, अमेरिकी शुल्क के प्रभाव का दूसरा पहलू यह है कि भारत-अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते को लेकर भी अनिश्चितता का माहौल पैदा हो गया है। अमेरिका पहले से ही इस समझौते के तहत भारतीय कृषि एवं डेयरी बाजार को खोलने की मांग पर अड़ा हुआ है। हालांकि, भारत स्पष्ट कर चुका है कि राष्ट्रहित से किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा। इसे लेकर पांच दौर की वार्ता हो चुकी है और देखना होगा कि 25 अगस्त से भारत में छठे दौर की संभावित वार्ता में भारत का क्या रुख रहेगा। जहां तक अमेरिकी शुल्क की बात है तो भारत के पास जवाबी शुल्क लगाने का विकल्प भी सुरक्षित है।