भारत ने एक बार फिर चीन से दो टूक कहा है कि आतंकवादियों के बीच विभेदीकरण नहीं हो सकता; सभी आतंकवादी एक समान हैं और उनसे एक सिद्धांत के तहत निपटा जाना चाहिए। रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर की चीन यात्रा में यों तो अनेक द्विपक्षीय मसले उठे, पर नया मसला जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगवाने की भारत की कोशिशों पर चीन की तरफ से डाली गई बाधा का था। भारत के लिए यह मुद्दा क्यों इतना अहम है, बताने की जरूरत नहीं। इस साल के शुरू में पठानकोट के वायुसैनिक ठिकाने पर हुए आतंकी हमले के पीछे मसूद अजहर का हाथ होने के तथ्य सामने आ चुके हैं।

लेकिन उसे संयुक्त राष्ट्र की तरफ से प्रतिबंधित किए जाने की भारत की कोशिश चीन के रवैए की वजह से नाकाम हो गई। गौरतलब है कि आतंकवाद से जुड़े मामलों में प्रतिबंध के प्रस्तावों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक समिति विचार करती है। इस समिति में चीन समेत पंद्रह सदस्य शामिल हैं। जब मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने का भारत का प्रस्ताव आया तो समिति के किसी भी और सदस्य ने नहीं, सिर्फ चीन ने उसका विरोध किया। चूंकि समिति में कोई भी प्रस्ताव सर्वसम्मति से ही पारित हो सकता है, इसलिए भारत का प्रस्ताव गिर गया। पर भारत ने हार नहीं मानी है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी दूत अकबरुद्दीन ने पिछले दिनों यह मामला महासभा में उठाया और कहा कि प्रतिबंध समिति के सर्वसम्मति के प्रावधान और उसके फैसले की वजहें औपचारिक रूप से महासभा को न बताए जाने के नियम पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। अगर ‘गोपनीयता’ का आवरण रहेगा, तो महासभा को कैसे मालूम होगा कि किसी प्रस्ताव को क्यों स्वीकार या खारिज किया गया। फिर, हाल में मसूद अजहर का मुद््दा सुषमा स्वराज ने भी चीन के विदेशमंत्री वांग ई से हुई बातचीत के दौरान उठाया था। अब रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर ने भारत की चिंता से चीन को अवगत कराया है।

द्विपक्षीय वार्ताओं में भी और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी चीन आतंकवाद के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता दोहराता आया है। फिर, मसूद अजहर के खिलाफ आए प्रस्ताव पर उसने असंगत रुख क्यों अपनाया? क्या इसलिए कि वह भारत और पाकिस्तान के आपसी मामलों में नहीं पड़ना चाहता? पर क्या मसूद अजहर पाकिस्तान का अधिकृत प्रतिनिधि है? अगर चीन को पठानकोट हमले के पीछे मसूद अजहर का हाथ होने का पक्का भरोसा नहीं हो पाया है, तब भी पहले के उसके रिकार्ड प्रतिबंध के प्रस्ताव को हां कहने के लिए काफी थे। भारत में हुए ज्यादातर आतंकी हमले लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद ने ही अंजाम दिए हैं, और मसूद अजहर निर्विवाद रूप से जैश का प्रमुख है।

फिर, तालिबान और अलकायदा से तार जुड़े होने के कारण जैश को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रतिबंधित कर रखा है। ऐसे में उसके मुखिया के प्रति नरमी क्यों? पर्रीकर की चीन यात्रा के दौरान दोनों पक्षों के बीच सीमा संबंधी मतभेद सुलझाने के बारे में भी चर्चा हुई। सीमा विवाद के बावजूद पिछले कुछ बरसों में चीन के साथ भारत का व्यापार तेजी से बढ़ा है। जी-20, ब्रिक्स और विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी आपसी सहयोग का रुख रहा है। पर यह अफसोस की बात है कि सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति के सदस्य के तौर पर चीन ने भारत की चिंता पर गंभीरता से गौर नहीं किया।