ऐसे समय में जब अमेरिकी राष्ट्रपति के भारी शुल्क थोपने को लेकर भारत में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, दोनों देशों के बीच सहयोग के रिश्तों में रुकावट आने का अनुमान लगाया जा रहा है, अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड की भारत यात्रा कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण है। गबार्ड ने प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मुलाकात की और कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। उन्होंने जिस तरह आतंकवाद, रक्षा, सुरक्षा और सूचनाओं को साझा करने जैसे मुद्दों पर बेबाक ढंग से ट्रंप प्रशासन की प्राथमिकताओं का उल्लेख किया और भारत की चिंताओं पर सहयोग का भरोसा दिलाया, उससे साफ हो गया कि अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों में खटास की आशंकाओं में कोई दम नहीं है।

गबार्ड ने स्पष्ट कहा कि डोनाल्ड ट्रंप इस्लामिक आतंकवाद खत्म करने को लेकर गंभीर हैं। आतंकवाद ने हमें चारों ओर से घेर लिया है और इसका दूरगामी असर पड़ेगा। उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश का नाम लेकर आतंकवाद और सांप्रदायिक उन्माद से निपटने पर जोर दिया। दरअसल, भारत और अमेरिका के संबंध केवल व्यापारिक मुद्दों से नहीं जुड़े हैं। दोनों के बीच आतंकवाद भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। इसके खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोनों का साझा वादा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ गबार्ड की बैठक में सुरक्षा और सूचनाओं के साझाकरण पर विशेष रूप से बातचीत हुई। रक्षामंत्री ने खालिस्तानी अलगाववादियों पर अंकुश लगाने का मुद्दा उठाते हुए मांग की कि सिख फार जस्टिस जैसे संगठनों पर अमेरिका प्रतिबंध लगाए। अगर ट्रंप प्रशासन इस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठाता है, तो भारत के लिए पन्नू जैसे अलगाववादियों के खिलाफ नकेल कसने में आसानी होगी। ये अलगाववादी अमेरिका और ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों की नागरिकता प्राप्त कर सुरक्षा घेरे में पहुंच गए हैं। भारत लगातार उनके खिलाफ दस्तावेज पेश करता रहा है, मगर अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के कानून कुछ ऐसे हैं कि भारत-विरोधी गतिविधियों के आरोप में उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाती।

अमेरिका अगर इस दिशा में कोई कड़ी पहल करता है, तो स्वाभाविक रूप से ब्रिटेन और कनाडा पर भी ऐसा करने का दबाव बनेगा। गबार्ड ने आतंकी गतिविधियों के संदर्भ में पाकिस्तान का विशेष रूप से उल्लेख किया। यह बात पूरी दुनिया को पता है कि पाकिस्तान दहशतगर्दों की पनाहगाह बन चुका है। विश्व व्यापार संगठन कार्यालय पर हमले के बाद अमेरिका ने जिस तरह पाकिस्तान के खिलाफ शिकंजा कसने की कोशिश की थी, वह बाद में शिथिल पड़ गई। इस पर फिर से विचार करने की जरूरत है।

ट्रंप प्रशासन एक नई विश्व व्यवस्था बनाने के दावे कर रहा है। हालांकि उसका जोर फिलहाल आर्थिक गतिविधियों को संतुलित और कारगर बनाने पर अधिक नजर आ रहा है। मगर सामाजिक और राजनीतिक रूप से अशांत क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच सकतीं। इसलिए जब तक अमेरिका अपने कूटनीतिक नफा-नुकसान का गणित लगाए बगैर आतंकवाद से लड़ने की रणनीति नहीं बनाता, तब तक इस समस्या से पार पाना कठिन ही रहेगा। अभी तक आतंकवाद की पहचान ही ठीक से तय नहीं की गई है। जो भारत की नजर में आतंकवाद है, वही चीन की नजर में दो देशों का निजी मामला बन जाता है। इसमें अमेरिका का गंभीर हस्तक्षेप ही किसी उल्लेखनीय नतीजे तक पहुंचने में मदद कर सकता है। बहरहाल, गबार्ड की यात्रा से भारत-अमेरिका संबंधों में नए सिरे से गर्मी लौटी है।