इसमें कोई दोराय नहीं कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को खत्म करने के लिए सभी जरूरी विकल्पों पर काम होना चाहिए और खासतौर पर इसमें वैसे देशों को अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए, जो इसमें अपना कुछ प्रभाव रखते हैं। संभव है कि अमेरिका भी रूस-यूक्रेन युद्ध का अंत ही चाहता हो। मगर जिन देशों से इस युद्ध को खत्म कराने के लिए कुछ करने की उम्मीद की जा रही है, क्या धौंस या धमकी के जरिए उनसे ऐसा करा पाना मुमकिन है?
पिछले कुछ समय से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सुविधा के मुताबिक और हित में कई देशों पर शुल्क लगाने या बढ़ाने के विकल्प को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में अब रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने को लेकर भी बेजा दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। गौरतलब है कि उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो के महासचिव मार्क रूट ने बुधवार को भारत, चीन और ब्राजील को यह चेतावनी दी थी कि अगर वे रूस के साथ व्यापार करना जारी रखते हैं, तो उन पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
भारत ने प्रतिबंध लगाने की धमकी के खिलाफ सख्त प्रतिक्रिया दी
इससे पहले ट्रंप ने भी यह कहा था कि अगर यूक्रेन को लेकर जल्दी ही शांति समझौता नहीं किया गया, तो रूस से सामान खरीदने वाले देशों पर सौ फीसद तक का शुल्क लगाया जाएगा। जाहिर है, यह बहुध्रुवीय विश्व में अन्य देशों को अपनी सुविधा और नीतियों के मुताबिक फैसले लेने की आजादी और संप्रभुता पर डाला जाने वाला एक दबाव है, जिसकी दिशा अमेरिका की इच्छा के हिसाब से संचालित करने की कोशिश की जा रही है। इसलिए भारत ने स्वाभाविक ही प्रतिबंध लगाने की धमकी के खिलाफ सख्त प्रतिक्रिया दी है।
भारत ने गुरुवार को इस मामले में ‘दोहरे मापदंडों’ के प्रति आगाह किया और जोर देकर कहा कि रूस से उसकी ऊर्जा खरीद राष्ट्रीय हितों और बाजार की गतिशीलता पर आधारित है। दरअसल, दिसंबर, 2022 में जब रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाया गया था, तब यूरोपीय संघ और अमेरिका ने यह उम्मीद की थी कि इस पाबंदी से रूस की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ेगा और उसे यूक्रेन के साथ युद्ध को खत्म करने पर मजबूर किया जा सकेगा। मगर तब रूस से भारत और चीन ने तेल की खरीद जारी रखी और यही वजह है कि प्रतिबंध ज्यादा कारगर साबित नहीं हुए।
भारत ने NATO को दिया करारा जवाब, रूस से व्यापार को लेकर दी थी टैरिफ की धमकी
सवाल है कि अगर नाटो और अमेरिका अन्य देशों के नीतिगत मामलों में इस स्तर पर जाकर दखल देना चाहते हैं, तो क्या यह प्रत्यक्ष रूप से दोहरे मापदंड नहीं हैं! राष्ट्रपति बनने के साथ ही ट्रंप ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को खत्म कराने के लिए बढ़-चढ़ कर दावे किए थे। मगर अब यह साफ है कि इस दिशा में ट्रंप की कोशिशों का कोई असर नहीं हुआ। उल्टे अमेरिका यूक्रेन को हथियार मुहैया करा रहा है। अब नाटो भारत, चीन और ब्राजील से रूस के राष्ट्रपति को फोन करके शांति वार्ता के लिए गंभीर होने को कह रहा है तो इसके क्या मायने हैं?
भारत के पास अपनी ऊर्जा जरूरतें हैं, उपलब्धता के सीमित विकल्प हैं और फिलहाल जो वैश्विक परिस्थितियां बनी हुई हैं, उसी के मुताबिक कदम उठाना होगा। यों भी एक संप्रभु देश अपनी जरूरतों के मुताबिक ही अपनी दिशा तय करता है और भारत ने यह साफ संदेश दे दिया है। इसके बावजूद अगर नाटो और अमेरिका की ओर से भारी शुल्क या फिर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी जाती है तो दरअसल यह टकराव और दबाव की वही नीति है, जिसे खत्म करने की वे इच्छा जता रहे हैं।