भारत और चीन के बीच विवादित सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बहाल करने के मकसद से बेजिंग में हुई परामर्श और समन्वय के लिए कार्यतंत्र यानी डब्लूएमसीसी की इकतीसवीं बैठक निस्संदेह आशाजनक कही जा सकती है। इस बैठक में दोनों पक्षों ने इस बात पर जोर दिया कि सीमा पर तनाव को कम करने और लंबित मुद्दों का समाधान खोजने के लिए ऐसी बातचीत बेहद जरूरी है, जो स्पष्ट, रचनात्मक और भविष्य की जरूरी संभावनाओं के प्रति उन्मुख हो।

आसियान और शंघाई शिखर सम्मेलन के दौरान बनी थी सहमति

यह बैठक दरअसल, पिछले महीने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की आसियान और शंघाई शिखर सम्मेलन के दौरान हुई मुलाकातों में सीमा विवाद को सकारात्मक ढंग से निपटाने को लेकर बनी सहमति के आधार पर बुलाई गई थी। यों भारत-चीन सीमा विवाद पुराना है, मगर चार साल पहले गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुए संघर्ष के बाद कड़वाहट बढ़ गई थी। वह तनाव अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। तब से लेकर अब तक इसे सुलझाने के लिए राजनयिक और सैन्य स्तर की कई बैठकें हो चुकी हैं। ताजा बैठक उसी की कड़ी थी।

इसे सकारात्मक रुख माना जाना चाहिए कि चीन ने कभी सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत से खुद को अलग नहीं किया। कुछ मौकों पर तो खुद चीन के सैन्य अधिकारियों ने भी बैठक बुलाई और उसके सकारात्मक नतीजे भी देखने को मिले। अगर चीन सचमुच सीमा पर शांति और स्थायित्व का पक्षधर है, तो उससे लचीले रुख की अपेक्षा स्वाभाविक है। दरअसल, अनेक मौकों पर देखा गया है कि बैठकों में तो चीन के अधिकारी सकारात्मक रुख जाहिर करते हैं, पर व्यवहार में वहां की सेना विस्तारवादी नीतियों पर आगे बढ़ती नजर आती है।

चीन ने कई जगह की अवैध निर्माण की कोशिश

चीन ने कई जगह की अवैध निर्माण की कोशिश

भारत की शिकायत अभी अपनी जगह बनी हुई है कि चीन ने भारत के हिस्से वाले भूखंड पर नजर गड़ाई हुई है। कई जगह उसने अवैध निर्माण तक की कोशिश की है। राजनीतिक स्तर पर भी चीन की रणनीति भारत को चारों तरफ से घेरने की ही देखी जाती रही है। वह भारत के पड़ोसी देशों में अपनी पैठ बना कर एक तरह से भारत पर सामरिक शिकंजा कसने का प्रयास करता देखा जाता है।

दो देशों के रिश्ते पारदर्शिता पर ही टिकाऊ और स्थायी बन सकते हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि विश्व मंचों और औपचारिक बैठकों में तो रचनात्मक संबंधों की जरूरत पर बल दिया जाए और व्यवहार में संदेह पैदा करने वाली गतिविधियां चलाई जाएं। पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश में उसने आर्थिक सहयोग के नाम पर जैसी गतिविधियां चलानी शुरू की हैं, वे भारत के लिए किसी भी रूप में रचनात्मक नहीं कही जा सकतीं।

हिंद-प्रशांत में चीन ने कर है बाड़बंदी

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दबदबा कायम करने के लिए चीन ने जिस तरह की सामरिक बाड़बंदी की है, वह भी भारत के लिए चिंता का विषय है। इन सबके बावजूद भारत व्यापारिक मामलों में चीन का एक बड़ा सहयोगी है। इसलिए केवल कूटनीतिक स्तर पर समन्वय का आदर्श पेश करने के बजाय जब तक वह व्यावहारिक धरातल पर भारत के मामले में विस्तारवादी नीतियों का त्याग नहीं करेगा, इसके सकारात्मक नतीजे निकलने मुश्किल बने रहेंगे।