वक्त के साथ आधुनिक होते समाज में उम्मीद की जाती है कि लोगों के बीच संवेदनशीलता के सूत्र गहरे होंगे, वे आपस में सहयोग की जड़ों को और मजबूत करेंगे। मगर ऐसा लगता है कि न केवल संवेदना और सहयोग की जगह खत्म होती जा रही है, बल्कि हालत यह है कि बेहद मामूली बातों के लिए भी लोग जानलेवा हिंसा पर उतारू हो जाते हैं।

जो लोग एक दूसरे के साथ उठते-बैठते, खाते-पीते हैं, उनमें से कोई एक बहुत छोटी रकम के लेनदेन से उपजे विवाद में अपने दोस्त की हत्या तक कर देता हैं। आए दिन इस तरह की घटनाएं दिल्ली जैसे शहर के लिए चिंता का कारण बन रही हैं। गौरतलब है कि दिल्ली के द्वारका में डाबरी थाना इलाके में महज पांच सौ रुपए को लेकर हुए विवाद के बाद दो दोस्तों के बीच मारपीट हुई और एक युवक ने दूसरे की चाकू से गोदकर हत्या कर दी। सूचना मिलने के बाद सीसीटीवी फुटेज और अन्य तकनीकी सहयोग के जरिए पुलिस ने आरोपी का पता लगाया और उसे गिरफ्तार किया, लेकिन इस वारदात की वजह और प्रकृति से किसी भी व्यक्ति को चिंतित होना चाहिए।

यों देश की राजधानी होने के बावजूद चोरी-झपटमारी से लेकर गंभीर या जघन्य अपराधों के मामले में दिल्ली की तस्वीर परेशान करती है। पिछले कुछ समय से वैसी बातों पर भी दो पक्षों में हुआ विवाद गंभीर और हिंसक शक्ल अख्तियार करने लगा है और उनमें हत्या तक के मामले सामने आने लगे हैं, जिन्हें थोड़े-से धीरज और विवेक के साथ निपटाया जा सकता है।

सवाल है कि पांच सौ रुपए कितनी बड़ी रकम थी कि उसे चुकाने के मसले पर किसी की जान चली जाए! इसके अलावा, सार्वजनिक जगहों पर सीसीटीवी कैमरों की निगरानी के दायरे में हत्या की घटना होती है, तो इसका मतलब यह भी है कि अपराधियों के बीच कोई डर नहीं है कि पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। जबकि अगर आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों को भी यह अहसास रहे कि कानून-व्यवस्था सख्त है और किसी आपराधिक घटना में पुलिस आरोपियों को तुरंत पकड़ सकती है, तो सिर्फ इतने भर से जघन्य अपराधों पर एक हद तक लगाम लगाई जा सकती है।

विडंबना यह है कि न केवल आपराधिक मानसिकता वाले, बल्कि आम लोगों के बीच भी मामूली बातों पर साधारण बहस के बीच धीरज छूट जा रहा है और बिना किसी बात की फिक्र किए लोग हिंसक हो जा रहे हैं। दूसरी ओर, पुलिस की उपस्थिति का खौफ नजर नहीं आता। पुलिस कार्रवाई करती है, मगर तब तक किसी की जान जा चुकी होती है।

पिछले कुछ महीनों के दौरान दिल्ली में कहीं किसी का हाथ छू जाने पर तो कहीं बहुत छोटी रकम चुकाने जैसी बातों पर भी दो पक्ष आपस में भिड़ गए और उसमें किसी की जान चली गई। सड़क पर वाहन चलाने के दौरान होने वाली हिंसक घटनाओं के दौरान यही साफ होता है कि सामान्य विवेक का इस्तेमाल कर मसले को सुलझाया जा सकता है, लेकिन दो पक्ष जब आपस में भिड़ते हैं तब बात करके शिकायत को सुनने और उसका हल निकालने की कोशिश करने के बजाय लोग पहले हिंसा का ही सहारा लेते हैं।

नतीजतन, जो मामला बातचीत करके सुलझाया जा सकता है, उसमें हत्या तक कर दी जाती है। अगर पेशेवर अपराधियों के समांतर साधारण लोग भी विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाने के बजाय हिंसक हो रहे हैं, तो यह एक जटिल स्थिति है। इसमें न केवल विवेक को ताक पर रख दिया जाता है, बल्कि कानून का खौफ भी नहीं दिखता है।