हिमाचल प्रदेश पर इन दिनों कुदरत की मार पड़ रही है। बादल फटने की घटनाओं से मंडी जिला सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। कई पहाड़ी इलाके भी चपेट में आए हैं। एक तरफ नदियां उफन रही हैं, तो दूसरी तरफ जमीन धंसने से खतरा बढ़ा है। मंगलवार देर रात मंडी जिले में बादल फटने से आई बाढ़ ने तबाही मचा दी। दस लोगों की असमय मौत हो गई, जबकि कई लोग लापता हैं।
यह हादसा कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिले के कई हिस्सों से संपर्क टूट गया है। गांवों में कई घर क्षतिग्रस्त हो गए, तो कुछ बह गए। राज्य में एक दिन में बादल फटने की ग्यारह घटनाएं हुईं, जिनमें सबसे अधिक मंडी जिले में दर्ज की गईं। यह दुखद है कि मानसून के बादल हिमाचल प्रदेश के लोगों पर आफत बनकर बरसे हैं। अगर समय पूर्व चेतावनी देने के तंत्र की माकूल व्यवस्था की गई होती तो शायद जान-माल का इतना नुकसान नहीं होता। वैसे बादल फटना कोई सामान्य मौसमी घटना नहीं है। जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है।
मूसलाधार बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से देशभर में कहर, हिमाचल में बादल फटा, कई मौतें, घर और सड़कें बह गईं
मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्र में तेजी से बदलते मौसम के मिजाज को समझने की जरूरत है। बचाव के क्या रास्ते हो सकते हैं, इस पर विचार करना होगा। यह जलवायु संकट का ही परिणाम है कि अब पहाड़ों पर भी गर्मी पड़ रही है और मानसून में बादल फटने की घटनाओं में इजाफा हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि नमी बढ़ने और गर्म हवा के तेजी से ऊपर उठने के कारण बादल फट रहे हैं और तबाही मचा रहे हैं।
ऐसे में चट्टानें, मिट्टी और पेड़ बहते हुए जब नीचे की ओर तेजी से आते हैं, तो रास्ते में आने वाली हर चीज को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। कृषि भूमि तो बर्बाद होती ही है, सड़कें और पुल भी ध्वस्त हो जाते हैं और जानी नुकसान भी होता है। हिमाचल और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में बार-बार बादल फटने की घटनाएं एक गंभीर चेतावनी है, जिसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।