इन दिनों फिर गोरक्षकों के उन्माद और गोरक्षा के नाम पर होने वाली भीड़ हिंसा को लेकर तीखे सवाल उठने शुरू हो गए हैं। हरियाणा के फरीदाबाद में गोतस्कर होने के शक में एक उन्नीस वर्षीय युवक की गोली मार कर हत्या कर दी गई। पूछा जा रहा है कि गोरक्षा के नाम पर किसी को जान से मार देने का हक आखिर इन रक्षकों को किसने दिया है। उन्हें शह और संरक्षण कहां से मिलता है।

फरीदाबाद की घटना करीब दस दिन पुरानी है। इस संबंध में पुलिस ने पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया है। आरोपियों ने स्वीकार किया है कि उन्होंने गलतफहमी की वजह से गोली चला दी। उन्हें सूचना मिली थी कि कुछ गोतस्कर गाय ले जाने की योजना बना रहे हैं। उसी के आधार पर उन्होंने नजर रखनी शुरू की। जब उन्हें एक गाड़ी पर शक हुआ और उसे रोकने का प्रयास किया, तो वह और तेज दौड़ने लगी। इसलिए उन्होंने गोली चला दी और उसमें एक युवक मारा गया। इस घटना के बाद चरखी-दादरी में एक कचरा बीनने वाले व्यक्ति को इस शक के आधार पर जान से मार डाला गया कि वह गोमांस खा रहा था। कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र में एक बुजुर्ग को कुछ युवकों ने गोमांस रखने के शक में बुरी तरह पीटा।

इससे पहले भी हो चुकी हैं कई घटनाएं

गोतस्करी और गोमांस की बिक्री रोकने के लिए हिंसा की घटनाएं हरियाणा सहित कई राज्यों में बढ़ी हैं। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में भी कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें गोतस्करी का आरोप लगा कर भीड़ या फिर गोरक्षा दल के सदस्यों ने कई लोगों को पीट-पीट कर मार डाला। कुछ घटनाएं, तो बहुत वीभत्स थीं, जिनमें हिंसा करने वालों ने तस्वीरें बना कर सार्वजनिक की। उनसे यही जाहिर हुआ कि गोरक्षा उनके लिए आस्था का नहीं, बल्कि उन्माद प्रदर्शन का मामला है।

भाजपा शासित राज्यों में गोतस्करी-गोमांस की ब्रिकी है बैन

हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि भाजपा शासित राज्यों में गोतस्करी, गोमांस की बिक्री आदि पर रोक है। इसके लिए कड़े कानून हैं। कुछ लोगों का कहना है कि गोरक्षकों को उन कानूनों से प्रोत्साहन मिलता है। गाय के प्रति उनमें आस्था है, इसलिए वे इस तरह गोतस्करी, गोमांस की बिक्री और उपभोग को बर्दाश्त नहीं कर पाते। गाय के प्रति किसी की आस्था और उसकी रक्षा पर शायद ही किसी को एतराज हो, मगर सवाल है कि इस आधार पर किसी को किसी की हत्या कर देने का अधिकार कैसे मिल सकता है।

बहुत सारे लोगों की नाराजगी इस बात से है कि गोरक्षकों के उत्पात पर संबंधित राज्यों की पुलिस का रवैया न्यायपूर्ण नजर नहीं आता। सवाल है कि जिन राज्यों में गोरक्षा संबंधी कानून लागू हैं, वहां इसकी जिम्मेदारी पुलिस के बजाय गोरक्षा दल के लोगों को क्यों निभानी पड़ रही है। करीब पांच वर्ष पूर्व पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस बात पर हरियाणा पुलिस को कड़ी फटकार लगाई थी कि गोतस्करी के मामलों में दोष सिद्धि की दर इतनी कम क्यों है।

जिन मामलों में गोतस्करी के नाम पर लोगों की हत्या कर दी गई, उनमें आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने कोई उल्लेखनीय कार्रवाई की हो, ऐसा एक भी उदाहरण नजर नहीं आता। आखिर पुलिस किसी को कानून अपने हाथ में लेने की छूट कैसे दे सकती है। जाहिर है, पुलिस की इस शिथिलता और गोरक्षा के नाम पर हिंसा करने वालों के प्रति उसकी नरमी का ही नतीजा है कि ऐसे मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे।