हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे तमाम विश्लेषणों और सर्वेक्षणों को धता बता चुके हैं। चुनाव पश्चात हुए सभी सर्वेक्षण हरियाणा में कांग्रेस की शानदार विजय और भाजपा की बुरी हार घोषित कर चुके थे। जम्मू-कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान लगाया जा रहा था। मगर नतीजे उसके ठीक उलट आए। जम्मू-कश्मीर के लोगों ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को नकार दिया। भाजपा को भी जम्मू क्षेत्र से जैसी बढ़त की उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हुई। कांग्रेस और नैशनल कांफ्रेंस ने मिल कर जरूरी बहुमत से अधिक सीटें जीत ली हैं। मगर तमाम चुनाव विश्लेषक और सर्वेक्षक हैरान हैं कि हरियाणा में भाजपा का जादू कैसे चल गया।
बहुत सारे लोगों को अब तक नतीजों पर यकीन नहीं हो रहा। इसलिए कि चुनाव की घोषणा से पहले ही हरियाणा में भाजपा का विरोध शुरू हो गया था। कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में भी भाजपा की सीटें घट कर आधी रह गई थीं। विधानसभा चुनाव में सत्ताविरोधी लहर साफ देखी जा रही थी। चुनाव दो-ध्रुवीय हो गया था। टिकट बंटवारे के वक्त भाजपा कार्यकर्ताओं में पहली बार विद्रोह का स्वर भी फूटा था। कुछ नेता भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में लौट आए थे। इस तरह इस चुनाव को लेकर भाजपा भी संदेह से भरी हुई थी।
हरियाणा में किसान, नौजवान, पहलवान और संविधान का मुद्दा कांग्रेस ने बढ़-चढ़ कर उठाया था। इसका असर भी नजर आ रहा था। किसानों और पहलवानों के मुद्दे पर कई जगह भाजपा नेताओं का बहिष्कार भी देखा गया। इसलिए जमीन पर यही लग रहा था कि कांग्रेस भारी बहुमत के साथ वापसी करने जा रही है। मगर नतीजे भाजपा के पक्ष में आए। जो भाजपा पिछली बार चालीस सीटों पर सिमट गई थी और उसे जजपा के साथ समझौता कर सरकार बनानी पड़ा थी, इस बार उसे स्पष्ट बहुमत मिल गया।
छतीसगढ़ चुनाव में भी हुआ था ऐसा
ऐसा ही माहौल छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के वक्त था। कांग्रेस की जीत साफ नजर आ रही थी, मगर वहां भाजपा ने स्पष्ट बहुमत से कहीं अधिक सीटें हासिल कर ली थी। हरियाणा नतीजों के बाद भी फिर से मतदान मशीन पर शक जाहिर किया जाने लगा है। खुद कांग्रेस ने निर्वाचन आयोग में इसकी गुहार लगाई है। मगर चुनावी समीकरणों को देखें तो स्पष्ट है कि भाजपा की रणनीति सफल रही है और कांग्रेस इस बार भी अपनी रणनीति में विफल साबित हुई है।
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हरियाणा चुनाव में जाट और गैर-जाट का मुद्दा निर्णायक साबित हुआ। जाट कांग्रेस की तरफ केंद्रित हो गए थे। हालांकि गैर-जाट को अपनी तरफ करने की उसने भरपूर कोशिश की, पर उसमें कामयाब नहीं हो सकी। फिर, इस बार आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी आदि दलों ने भी अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। कुल मिला कर चार फीसद से अधिक वोट इन दलों को मिले हैं। भाजपा के अपने प्रतिबद्ध मतदाता इधर से उधर नहीं हुए। फिर, कई जगहों पर मतदान बहुत कम हुआ। इन सबका असर कांग्रेस पर पड़ा।
मुख्यमंत्री बदलने से जीत हुई सुनिश्चित
छोटे दलों ने जो वोट अपने पाले में खींचे, वे अगर मिल जाते, तो कांग्रेस की जीत निश्चित थी। मगर भाजपा ने चुनाव से कुछ समय पहले मुख्यमंत्री बदल कर और गैर-जाट वोट को आकर्षित कर अपनी शानदार विजय सुनिश्चित कर ली। हालांकि दोनों राज्यों में सरकारों के सामने चुनौतियां कठिन हैं। हरियाणा में भाजपा के लिए विश्वास जीतने की चुनौती है, तो कश्मीर में केंद्र के साथ तालमेल बनाए रखने की।