ऐसा लगता है कि जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर के तौर पर अप्रत्यक्ष करों की प्रणाली में अब तक के सबसे बड़े बदलाव का रास्ता जल्दी ही साफ हो जाएगा। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली समिति ने जो सिफारिशें दी हैं वे सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच पुल का काम करेंगी। दरअसल, समिति ने एक तरह से विपक्ष की कई मांगों पर मुहर लगा दी है। जीएसटी विधेयक को समर्थन देने के लिए कांग्रेस ने तीन शर्तें रखी थीं। एक यह कि जीएसटी की अधिकतम सीमा अठारह फीसद तय की जाए।

दूसरे, अंतरराज्यीय बिक्री पर एक फीसद अतिरिक्त कर का प्रावधान हटाया जाए। तीसरे, विवादों के निपटारे के लिए एक तंत्र बनाया जाए। समिति ने भी कहा है कि अधिकतर वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी की दर सत्रह-अठारह फीसद होनी चाहिए। इससे वस्तुओं की कीमतों में कुछ राहत की उम्मीद की जा रही है, पर सेवाएं और महंगी हो जाएंगी। समिति ने इस मांग को भी उचित ठहराया है कि अंतरराज्यीय बिक्री पर एक फीसद अतिरिक्त दर का प्रस्तावित प्रावधान हटाया जाए। असल में इस एक फीसद का प्रावधान जीएसटी की मूल संकल्पना में था ही नहीं। इसे गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की मांग पर जोड़ा गया।

चूंकि जीएसटी अंतिम चरण में लागू होना है, लिहाजा मैन्युफैक्चरिंग में अग्रणी राज्यों को अंदेशा है कि उन्हें नुकसान हो सकता है। अलबत्ता समिति की राय है कि जीएसटी की अधिकतम सीमा का प्रावधान विधेयक में न हो। इसकी वजह है। जीएसटी के लिए लाया गया विधेयक, संविधान संशोधन विधेयक है। अगर विधेयक में अधिकतम दर का प्रावधान रखा जाएगा, तो फिर दो तिहाई बहुमत के बगैर उसे बदला या हटाया नहीं जा सकेगा। इसलिए समिति चाहती है कि जीएसटी की अधिकतम सीमा विधेयक के जरिए तय न की जाए। ऐसा होने पर सरकार सामान्य बहुमत के सहारे उसे बदल सकेगी।

इस तरह विपक्ष की मुख्य मांग को मानते हुए समिति ने सरकार की सहूलियत का भी ध्यान रखा है। एक मुद््दे पर अब भी मतभेद है। विपक्ष चाहता है कि जीएसटी परिषद में राज्यों के मत-प्रतिशत का हिस्सा तीन चौथाई हो। पर सरकार इसे दो तिहाई से अधिक करने को तैयार नहीं है। कुल मिला कर जीएसटी पर गतिरोध टूटता नजर आ रहा है। यह प्रगति और पहले हो सकती थी। पर सत्तापक्ष मतभेदों को इस तरह पेश कर रहा था मानो जीएसटी और इसके जरिए आर्थिक सुधार की फिक्र केवल उसे है। जबकि जीएसटी की पहल यूपीए सरकार ने की थी।

मूल विधेयक भी उसी ने पेश किया था। यह अलग बात है कि बरसों-बरस राज्यों की आपत्तियों के कारण वह विधेयक अधर में लटका रहा। मोदी सरकार का लाया हुआ विधेयक लोकसभा से पारित हो चुका है, पर राज्यसभा में लंबित है जहां राजग का बहुमत नहीं है। अगर विपक्ष की मांगों के प्रति अब जाकर इतना लचीलापन दिखाया गया है तो इसकी मुख्य वजह राज्यसभा की बाधा पार करने की सरकार की गरज है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बातचीत कर जीएसटी पर सहमति बनाने की पहल की। अरविंद सुब्रमण्यम समिति