तमिलनाडु में एक मंत्री को शपथ दिलाने के मामले में वहां के राज्यपाल ने जिस तरह की जिद पकड़ ली थी, वह पहले ही सवालों के घेरे में थी। सुप्रीम कोर्ट ने स्वाभाविक ही उस पर राज्यपाल को फटकार लगाई। गौरतलब है कि राज्यपाल ने द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम के नेता के पोनमुडी को मंत्री पद की शपथ दिलाने से इनकार कर दिया था।

हालांकि शीर्ष अदालत ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में पोनमुडी की दोषसिद्धि और सजा पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद राज्यपाल ने अपने रुख को नाहक ही प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया हुआ था। इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल अदालत की अवहेलना कर रहे हैं। अदालत ने केंद्र सरकार से भी पूछा कि अगर राज्यपाल संविधान का पालन नहीं करते, तो सरकार क्या करती है। उसके बाद राज्यपाल द्रमुक नेता को मंत्री पद की शपथ दिलाने को राजी हो गए। सवाल है कि क्या अब तमिलनाडु के राज्यपाल को अपने पद की मर्यादा के समांतर अपनी जिद और कानूनी स्थितियों पर विचार करने की जरूरत महसूस होगी!

दरअसल, तमिलनाडु सरकार के साथ वहां के मौजूदा राज्यपाल के तल्ख रिश्ते छिपे नहीं हैं। राज्य सरकार ने उन पर कई बार अपने काम में बाधा डालने के आरोप लगाए हैं। कुछ समय पहले जब राज्य सरकार ने राजभवन की ओर से विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, तब अदालत ने साफ कहा था कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना चाहिए।

ताजा मामले में भी राज्यपाल ने कानून और तकनीकी पहलुओं का ध्यान रखे बगैर मंत्री को शपथ दिलाने से इनकार कर दिया। राज्यपाल से जुड़ी कुछ संवैधानिक व्यवस्थाएं हैं, जिनका पालन करना इस पद की गरिमा को बनाए रखने के लिए जरूरी है। मगर हाल के वर्षों में कई राज्यों में जिस तरह इस पहलू की अनदेखी होती दिखी है, अगर इसे रोका नहीं गया तो इसका आखिरी नुकसान लोकतंत्र को होगा।