किसान आंदोलन को दबाने की जैसी कोशिश हरियाणा सरकार ने की, वैसी देश में कहीं नहीं देखी गई। तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन शुरू हुआ तो हरियाणा सरकार ने पंजाब और हरियाणा की तरफ से दिल्ली की तरफ बढ़ रहे किसानों को रोकने के लिए सड़कें खुदवा दी थीं। फिर जब तीनों कानूनों को वापस लेते वक्त केंद्र सरकार की तरफ से किए गए वादे पूरे न किए जाने पर, पांच महीने पहले, दूसरी बार पंजाब और हरियाणा के किसानों ने दिल्ली की तरफ कूच किया तो हरियाणा सरकार ने शंभू सीमा पर उन्हें रोक दिया। राजमार्ग पर दीवारें खड़ी कर दी गईं, मोटी-मोटी कीलें गाड़ दी गईं।
किसानों ने वहीं डेरा डाल दिया, तो कई दिन तक उन पर ड्रोन से आंसू गैस के गोले बरसाए गए, ताकि वे वापस लौट जाएं। उस दौरान हरियाणा पुलिस की तरफ से गोलीबारी भी की गई, जिसमें एक युवक की मौत हो गई। राजमार्ग पर अवरोध खड़े किए जाने की वजह से रोजाना हजारों आम लोगों को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। उस इलाके के व्यापारियों की परेशानियों का अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने वहां के उच्च न्यायालय में गुहार लगाई। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार एक हफ्ते के भीतर राजमार्ग से अवरोधक हटा ले। अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी कह दिया है कि हरियाणा सरकार को इस तरह राजमार्गों पर बाधा खड़ी करने का कोई हक नहीं है। राज्य सरकार की तो यातायात को सुगम बनाने की जिम्मेदारी होती है।
दरअसल, गोलीबारी में मारे गए युवक की न्यायिक जांच कराने के पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ हरियाणा सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी। उसी की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि शंभू सीमा से अवरोधक तुरंत हटाए जाएं। किसान भी नागरिक होते हैं और उन्हें सरकार के सामने अपनी मांग रखने का हक है।
इसी तरह तीन कानूनों के विरोध में उठे आंदोलन को दबाने के लिए दिल्ली की सीमाओं पर किसानों को रोकने के लिए बड़ी-बड़ी कीलें ठोंक दी गई थीं। तब भी सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि किसानों को अपनी मांग रखने का अधिकार है और राजमार्गों को किसी भी रूप में रोका नहीं जाना चाहिए। मगर लगता है कि अदालतों के बार-बार यह रेखांकित करने के बावजूद सरकारों को इस लोकतांत्रिक तकाजे की कोई परवाह नहीं है।
किसान कोई किसी दूसरे देश के सिपाही तो हैं नहीं कि उनके दिल्ली पर हमला कर देने का खतरा है। उन्होंने तो लोकतांत्रिक तरीके से दिल्ली के रामलीला मैदान में इकट्ठा होकर अपनी मांगें रखने की अनुमति मांगी थी। मगर हरियाणा सरकार ने उनके साथ अपनी जोर आजमाइश शुरू कर दी। ये सवाल अब भी अपनी जगह बने हुए हैं कि तीन कानूनों को वापस लेते समय प्रधानमंत्री ने जिन मांगों को पूरा करने का वादा किया था, वे अभी तक पूरी क्यों नहीं की गईं।
राहुल गांधी ने भी यह मुद्दा संसद में उठाया था, मगर उसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। किसानों की सबसे अहम मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी का कानून बनाने को लेकर है। इसका वादा प्रधानमंत्री ने भी किया था, मगर इस दिशा में कोई पहल नजर नहीं आई। इसके अलावा आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दायर मुकदमे वापस लेने और कर्ज माफी की मांग है। सरकार अपने वादों पर भी आगे कदम नहीं बढ़ा रही, तो आंदोलन तो सिर उठाएंगे ही।