पिछले काफी समय से देश में स्वतंत्र, स्वच्छ और पारदर्शी चुनाव के लिए लगातार आवाज उठाई जाती रही है। खासतौर पर ईवीएम के जरिए मतदान और मतों की गिनती को लेकर कई बार संदेह जाहिर किए गए। ऐसे आरोप सामने आए कि इसमें तकनीकी गड़बड़ी के जरिए या मतगणना में हेरफेर करके नतीजे प्रभावित किए जाते हैं। विडंबना यह है कि जब भी इस तरह के सवाल उठाए जाते हैं, तो आमतौर पर उन्हें निराधार मान कर खारिज कर दिया जाता है।

दलील यह होती है कि जो उम्मीदवार हारता है, केवल उसे ही शिकायत होती है। जरूरी नहीं कि ऐसे सभी आरोप सही साबित हों। मगर इसी बीच अगर कहीं से मतगणना और नतीजों में हेरफेर की कोई शिकायत हर स्तर की जांच-पड़ताल के बाद अंतिम तौर पर सही पाई जाए, तो ऐसे में समूची प्रणाली भी संदेह के घेरे में आती है। जाहिर है, इसके बाद फिर नतीजे और उसके आधार पर बनी सरकारें भी कठघरे में होती हैं। गौरतलब है कि हरियाणा के पानीपत जिले के ग्राम पंचायत बुआना लखू में सन 2022 में हुए सरपंच के चुनाव के बाद जब नतीजों की घोषणा हुई, तभी इस पर विवाद उठा था। वह मामला तब जिला अदालत से होते हुए आखिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

पलट गया चुनाव परिणाम और हारा हुआ प्रत्याशी बन गया सरपंच

ऐसी शिकायतें अब तक शायद ही किसी अंजाम तक पहुंची हों। मगर इस मामले में शीर्ष अदालत के फैसले ने पहली बार ईवीएम से चुनाव और मतगणना पर उठने वाले सवालों को मजबूत आधार दिया है। दरअसल, इस मामले में अदालत ने खुद ईवीएम मंगवा कर अपनी निगरानी में मतों की फिर से गिनती करवाई और पहले के नतीजे से अलग परिणाम घोषित किया। इसमें परिणाम पलट गया और पहले हार चुके प्रत्याशी को सरपंच बनाया गया।

डिजिटल के दौर में निर्वाचन आयोग के सामने बड़ी चुनौती, देश में मतदाताओं के एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत होने की समस्या

जाहिर है, शीर्ष अदालत की इस कवायद के बाद अब ईवीएम के जरिए डाले गए मत और उसकी गिनती से लेकर किसी प्रत्याशी की जीत-हार की घोषणा तक की समूची प्रक्रिया की पारदर्शिता पर अगर सवाल उठते हैं, तो उसे बेमानी या निराधार घोषित कर पाना मुश्किल होगा। इस पूरे मामले से यह भी जाहिर होता है कि किसी चुनाव की पूरी प्रक्रिया से जुड़े सभी दस्तावेजों को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है, ताकि विवाद की स्थिति में उनकी जांच हो और सारे संदेह दूर किए जाएं।