अत्याधुनिक अर्थव्यवस्था वाले सात देशों के समूह जी-7 के शिखर सम्मेलन में भारत की विशेष उपस्थिति इसकी बढ़ती आर्थिक ताकत का ही प्रमाण है। भारत इस समूह का सदस्य नहीं है, मगर हर वर्ष इसे विशेष तौर पर आमंत्रित किया जाने लगा है। हालांकि इस बार इटली में आयोजित इस शिखर सम्मेलन में अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और हिंद प्रशांत क्षेत्र के बारह विकासशील देशों के नेताओं को भी निमंत्रित किया गया था, पर भारत को खास तवज्जो दी गई। दरअसल, यह सम्मेलन एक ऐसे समय में आयोजित हुआ, जब दुनिया में आर्थिक उथल-पुथल मची हुई है। रूस-यूक्रेन युद्ध और हमास-इजराइल संघर्ष जारी है।

पूरी दुनिया अभी मंदी की चपेट में है। यहां तक कि जी-7 के सदस्य देश अमेरिका, इटली, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा और जापान भी इससे बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं। मगर भारत की अर्थव्यवस्था पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नजर नहीं आ रहा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक भारत दुनिया की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है। जी-7 के मंच से प्रधानमंत्री ने फिर अपना संकल्प दोहराया कि 2047 तक भारत को विकसित देश बनाना है। उधर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के स्तर पर जी-7 देशों की भागीदारी लगातार घट रही है। वे विश्व जीडीपी में साठ फीसद की भागीदारी से चालीस फीसद पर पहुंच गए हैं।

भारत लगातार विकसित देशों के समांतर एक ताकतवर समूह बनाने की कोशिश कर रहा है। उसी रणनीति के तहत जी-20 सम्मेलन के दौरान अफ्रीकी संघ को भी समूह में शामिल किया गया। इस तरह भारत वैश्विक दक्षिण के देशों को एक मंच पर लाकर एक नया आर्थिक मंच बनाना चाहता है। जी-7 के सदस्य देश इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि भारत सहित वैश्विक दक्षिण एक विशाल बाजार है, वहां सस्ते श्रम की उपलब्धता भी भरपूर है। हालांकि इस बार के शिखर सम्मेलन में प्रमुख रूप से दुनिया भर में बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाने, वैश्विक स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने संबंधी रणनीतियां बनाने पर जोर रहा, पर रूस और चीन की वजह से बढ़ते तनाव को रोकने के उपायों पर भी चर्चा हुई। जी-7 समूह के सभी देशों के साथ भारत के रिश्ते बेहतर हैं और उनके साथ व्यापार-वाणिज्य संबंधी गतिविधियां निरंतर बढ़ रही हैं। जी-7 का जोर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ रिश्ते बेहतर बनाने पर है, इस तरह भारत इसमें मजबूत कड़ी साबित होगा।

भारत के सामने फिलहाल कड़ी चुनौती चीन की तरफ से है। चीन को लेकर जी-7 देश भी वक्र दृष्टि रखते हैं। इस दौर में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कमजोर होता गया है और जी-7 देश वैश्विक मामलों में निर्णायक साबित हो रहे हैं, वे भारत को विशेष रूप से अपने साथ जोड़े रखना चाहते हैं, तो निश्चय ही यह चीन के लिए चिंता का विषय होगा। रूस-यूक्रेन संघर्ष में भी भारत की मध्यस्थता को अहम माना जा रहा है, जबकि इन दिनों रूस की नजदीकी चीन से बढ़ी है। जैसा कि प्रधानमंत्री ने जी-7 के मंच से यह संकल्प दोहराया कि वे पड़ोसी देशों से रिश्ते मधुर बनाने पर जोर देंगे, ताकि वे चीन की गिरफ्त से बाहर निकल सकें, यह भी चीन के लिए रणनीतिक रूप से परेशान करने वाली बात है। जी-7 के इस शिखर सम्मेलन से भारत के लिए नई राहें खुलती नजर आती हैं।