किसी भी देश में सत्ता बदलने के साथ उसकी नीतियों में बदलाव आना हैरानी की बात नहीं है, लेकिन इस बार अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद जो संकेत सामने आ रहे हैं, वे चौंकाने वाले हैं। हालांकि ट्रंप आधिकारिक रूप से जनवरी में राष्ट्रपति पद संभालेंगे, मगर पिछले कुछ दिनों से वे जिस तरह के बयान दे रहे और अपनी सरकार गठन को लेकर जो तस्वीरें पेश कर रहे हैं, उससे साफ है कि वे इस बार बहुत कुछ नया करने जा रहे हैं।
अमेरिकी डालर को कमजोर करने की कोशिश
अपने एक ताजा बयान में उन्होंने कहा कि अगर कोई देश अमेरिकी डालर को कमजोर करने की कोशिश करेगा, तो उसे अमेरिका में कारोबार के लिए सौ फीसद शुल्क की नीति का सामना करना पड़ेगा। ट्रंप के निशाने पर मुख्य रूप से ब्रिक्स समूह के नौ देश हैं। उनके बयान को एक चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है।
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सवाल है कि औपचारिक रूप से सत्ता संभालने के पहले ही ट्रंप का ऐसा आक्रामक रुख क्यों सामने आने लगा है। आर्थिक मामलों पर उभरे गतिरोध अलग-अलग देशों के साथ सहयोग आधारित नीतियों के जरिए और सहमति के आधार पर दूर किए जाते हैं या आक्रामक नीतियां लागू करने की धमकी से?
ब्रिक्स देशों को चेतावनी
इसमें कोई दोराय नहीं कि अमेरिका का अपनी अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए चिंता करना स्वाभाविक है। मगर क्या इसके लिए टकराव और चेतावनी कोई उपयुक्त रास्ता है? नए वैश्विक परिदृश्य में सभी देश अपनी आर्थिक मजबूती के नए विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। इस क्रम में ब्रिक्स देश और खासकर रूस और चीन पिछले कुछ वर्षों से अमेरिकी डालर के विकल्प के रूप में अपनी नई मुद्रा लाने की कोशिश कर रहे हैं।
मगर इसे अमेरिका अपने डालर और इस तरह अपनी अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह मान रहा है और इस स्थिति में वह ब्रिक्स देशों को अपने यहां व्यापार बाधित करने की चेतावनी दे रहा है। ट्रंप की चिंता अमेरिका के हित में हो सकती है, लेकिन अगर आर्थिक मसले पर दुनिया बहुध्रुवीय और वैकल्पिक रास्ते तलाशती है, तो अमेरिका को इसके कारणों पर विचार करना चाहिए। नए विश्व में एकाधिकार का रास्ता शायद किसी भी देश के हित में नहीं होगा।