हर वर्ष त्योहारों पर घर जाने के लिए बड़ी संख्या में लोगों को जद्दोजहद करनी पड़ती है। जबकि सरकार यह दावा करती है कि यात्रियों की सुविधा के मद्देनजर रेलगाड़ियों की संख्या बढ़ाई गई है। विशेष गाड़ियां भी चलाई जा रही हैं। फिर भी ये कम क्यों पड़ रही हैं? हालत यह है कि दीपावली और छठ से पहले देश के विभिन्न शहरों से अन्य दिशाओं खासकर पूरब या बिहार की ओर जाने वाले यात्रियों के लिए टिकट हासिल करना युद्ध जीत लेने जैसा होता है। भारी संख्या में लोग किसी ट्रेन में टिकट न मिलने पर निराश होते हैं। यहां तक कि तत्काल कोटे में भी लोगों को सीट नहीं मिलती। इसके लिए जो नियम-कायदे अब बनाए गए हैं, उससे आमतौर पर साधारण यात्रियों को असुविधा ही हो रही है।
दूसरी ओर मुंबई, पुणे, सूरत, बंगलुरु और दिल्ली जैसे बड़े शहरों से लखनऊ, पटना और कोलकाता जाने वाले विमानों का महंगा किराया विकल्पों को सीमित कर देता है। रेलवे ने प्रतीक्षा सूची के यात्रियों को राहत देने के लिए विशेष ट्रेनों का संचालन जरूर किया है, लेकिन इसका असर नहीं दिख रहा है।
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त्योहारों पर हर बार बड़ी संख्या में ट्रेनें चलाने की घोषणा कर दी जाती है। फिर भी यात्रियों को टिकट नहीं मिलता। सवाल है कि बारह हजार से अधिक विशेष ट्रेनें चलाने की घोषणा के बावजूद यात्रियों के लिए आसानी से टिकट उपलब्ध क्यों नहीं है? खासतौर पर होली और दिवाली जैसे त्योहारों पर यह हर वर्ष की समस्या है। सरकार के सामने ऐसे मौके पर ट्रेनों की जरूरत का पूरा अनुमान और हिसाब होता है, मगर यह समस्या बदस्तूर कायम है। यह कड़वा सच है कि आज भी हजारों यात्री जान जोखिम में डाल कर सामान्य कोच से अपने घर जाते हैं।
प्लेटफार्म पर कभी-कभी भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। जाहिर है, यात्रियों की संख्या के हिसाब से चलाई जा रही ट्रेनें पर्याप्त नहीं हैं। विकल्प के तौर पर कई लोग बसों से यात्रा करते हैं, जो काफी जोखिम भरा और बेहद महंगा भी होता है। एक ओर, बुलेट ट्रेन चलाने सहित भारतीय रेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सेवा बनाने के दावे किए जाते हैं, दूसरी ओर पर्व-त्योहार के मौके पर लाखों लोगों के लिए अपने गांव-घर जाना एक मुश्किल चुनौती है।