पिछले कई दिनों से राजधानी दिल्ली की हवा कैसी है, यह जगजाहिर है। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि प्रदूषण में लगातार बढ़ोतरी की वजह से यहां प्रतिबंधों के स्तर को और ज्यादा सख्त करने की जरूरत पड़ रही है। इसके बावजूद दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कोई राहत मिलती नहीं दिख रही। हवा में घुले धुएं और धुंध की वजह से लोगों की परेशानियां कम नहीं हो रहीं हैं, सेहत के सामने कई तरह की मुश्किलें गहरा रही हैं। इस मसले पर शीर्ष अदालत तक को सख्ती बरतने का आदेश जारी करना पड़ा है और उसने प्रदूषण पर काबू पाने के लिए लागू किए गए उपायों की निगरानी करने की भी जरूरत बताई है। लगातार बढ़ती मुश्किलों के मद्देनजर इस उम्मीद में दिल्ली में ग्रैप-4 के नियम लागू किए जा चुके हैं कि प्रदूषण से उपजी स्थिति में कुछ सुधार होगा। मगर सरकार की ओर से तमाम उपायों को सख्ती से लागू करने के दावे के बरक्स हकीकत यह है कि राजधानी में वायु गुणवत्ता सूचकांक चार सौ से ऊपर दर्ज किया गया।
गौरतलब है कि ग्रैप-4 के तहत दिल्ली में बाहर से आने वाले वाहनों के सीमित प्रवेश को लेकर जो नियम लागू किए गए हैं, उनके सख्ती से पालन को लेकर कई सवाल उठे हैं। वाहनों के दिल्ली में दाखिल होने की जगहों पर सख्त निगरानी लागू करने पर जोर देने से लेकर कृत्रिम बारिश कराने तक पर विचार किया जा रहा है। मगर इस क्रम में नियमों के असर और उनके विरोधाभास को लेकर भी ऊहापोह की स्थिति बन रही है।
प्रदूषण की रोकथाम के मद्देनजर पहले ही दिल्ली में पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारों के लिए क्रमश: पंद्रह और दस वर्ष की सीमा तय की गई है। मगर फिलहाल बाहर से दिल्ली में प्रवेश करने वाली गाड़ियों को जिस तरह प्रतिबंधित किया गया है, उसमें इससे कम अवधि वाले वाहन भी प्रभावित हो रहे हैं। दिल्ली में आवाजाही के लिए सार्वजनिक परिवहन की हालत यह है कि बसों से गंतव्य तक सही समय पर पहुंचना संभव नहीं रह गया है। वहीं मेट्रो भी अब समय और जरूरत के तकाजे के बोझ से दब रही है।
सवाल है कि इस वर्ष फिर ठंड की आहट के साथ ही प्रदूषण की वजह से उपजी समस्या के गहराते जाने के बाद दिल्ली सरकार ने जो शुरुआती उपाय किए, उससे राहत क्यों नहीं मिली! अब ग्रैप-4 के भी नियम लागू किए जाने के बावजूद राजधानी की हालत ऐसी क्यों बनी हुई है कि सुप्रीम कोर्ट को भी स्कूलों के संचालन और अन्य स्तर पर नियंत्रण को लागू करने की हिदायत देनी पड़ी है। प्रदूषण का जो स्तर बना हुआ है, उस पर काबू पाने के लिए हर उचित उपाय किए जाने चाहिए। इससे किसी को असहमति नहीं होगी। मगर क्या इस क्रम में ऐसी स्थिति पैदा होनी चाहिए कि उन उपायों से आम लोगों को राहत मिलने के बजाय उनकी परेशानियों में इजाफा ही हो जाए।
दिल्ली में वायु गुणवत्ता की दशा जिस पैमाने तक पहुंच गई है, उसमें बाहर से आने वाले वाहनों के यहां सीमित प्रवेश को लेकर लागू नियम का अपना महत्त्व हो सकता है। लेकिन इसके बावजूद अगर दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक में कोई सुधार नहीं हो रहा है, तो इसकी क्या वजहें हैं? प्रदूषण से निपटने के वास्तविक उपायों को लागू करने के मोर्चे पर निरंतरता सुनिश्चित किए बिना तात्कालिक सख्तियों से कितनी राहत मिल सकेगी?