दिल्ली के रोहिणी इलाके में एक मुठभेड़ के दौरान पुलिस के हाथों चार वांछित अपराधियों के मारे जाने की घटना कानून-व्यवस्था और आपराधिक तत्त्वों पर काबू पाने के लिहाज से पुलिस की बड़ी उपलब्धि है। मगर इस मुठभेड़ की अहमियत इसलिए ज्यादा है कि मारे गए अपराधियों की मंशा बिहार में विधानसभा चुनावों के दौरान किसी बड़ी हिंसक वारदात के जरिए दहशत फैलाने की थी! ‘सिग्मा गिरोह’ के नाम से कुख्यात अपराधियों का जबरन वसूली से लेकर भयादोहन और हत्या जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने का एक बड़ा जाल था और लंबे समय से पुलिस को उनकी तलाश थी।
इसी क्रम में बिहार के सीतामढ़ी जिले की पुलिस की सूचना और दिल्ली पुलिस के साथ एक सुनियोजित अभियान के साथ रोहिणी इलाके में कार में जा रहे इन अपराधियों को रोका गया। लेकिन जब अपराधियों ने गोलीबारी शुरू कर दी, तब पुलिस ने भी जवाब दिया। माना जा रहा है कि पुलिस की इस कामयाबी के साथ बिहार के अपराध जगत में वर्चस्व कायम करने के लिए आतंक का माहौल खड़ा करने वाले ‘सिग्मा गिरोह’ का खात्मा हो गया है, लेकिन इससे जुड़ा एक प्रश्न गंभीर है और इसका दायरा काफी बड़ा है।
दरअसल, इस संबंध में आई खबरों के मुताबिक, बिहार पुलिस ने यह जानकारी साझा की थी कि एक फोन काल में इस गिरोह का सरगना अपने साथियों से बिहार में चुनाव से पहले दहशत फैलाने की बात कर रहा था। यह एक ऐसा पहलू था, जो समूचे बिहार के चुनाव को बुरी तरह प्रभावित कर सकता था। इसलिए बिहार पुलिस ने अगर इस आधार पर बिना देर किए सक्रियता दिखाई और दिल्ली पुलिस से तालमेल कर इस अभियान को कामयाब बनाया तो निश्चित रूप से यह बड़ी उपलब्धि है। बिहार में चुनाव और अपराध का इतिहास जगजाहिर रहा है।
अमूमन हर चुनाव के दौरान कुछ नेताओं की ओर से अपने प्रतिद्वंद्वियों को मात देने के लिए हर तरह के हथकंडे का सहारा लेने के किस्से आम रहे हैं, जिसमें किसी अपराधी को सुपारी देकर दहशत फैलाने से लेकर हत्या या इसके लिए कोशिशें तक शामिल थीं। इसका नतीजा यह होता था कि एक ओर कोई उम्मीदवार अपने कदम पीछे खींच लेता था, तो दूसरी ओर मतदाताओं के बीच भी भय का माहौल व्याप्त हो जाता था। इसका सीधा असर चुनाव, मतदान की प्रक्रिया और नतीजों पर पड़ता था।
अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर दिल्ली में मारे गए ‘सिग्मा गिरोह’ के चार अपराधियों का मकसद अगर इसी तरह की घटना को अंजाम देना था, तो एक बार फिर बिहार के चुनावों में कैसी तस्वीर देखने को मिलती। खबरों के मुताबिक, यह कुख्यात गिरोह बिहार से लेकर नेपाल सीमा तक फैला हुआ था और इसके सदस्य सोशल मीडिया के जरिए भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करते थे। साथ ही ये लोग बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में रंगदारी, सुपारी लेकर हत्या और अवैध हथियार आपूर्ति जैसे अपराधों में लिप्त थे। इस गिरोह के खात्मे के बाद थोड़ी राहत महसूस की जा सकती है, लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि बिहार में ऐसे दूसरे गिरोह सक्रिय नहीं हैं।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान बिहार में अपराधों का ग्राफ इस कदर तेज रफ्तार से बढ़ा है कि इसे लेकर हर तरफ चिंता जताई जाने लगी है। सरेआम हत्या की कई बड़ी वारदात से यह साफ हुआ कि राज्य में सुशासन का दावा महज एक लुभावना नारा भर है। हालांकि पुलिस अगर ईमानदार इच्छाशक्ति के साथ काम करे, तो उसके लिए अपराधियों पर शिकंजा कसना बहुत मुश्किल नहीं है।
