भाजपा के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार को कोई छब्बीस साल बाद बजट पेश करने का मौका मिला है। इसमें उन सभी संकल्पों को धरातल पर उतारने का प्रयास है, जिनकी चर्चा वह चुनाव के दौरान या उससे पहले करती आई है। जनता से किए वादों की कसौटी पर यह बजट कितना साकार होगा, यह भविष्य बताएगा। फिलहाल नई सरकार ने पिछले वर्ष से कहीं अधिक, एक लाख करोड़ रुपए का बजट पेश कर अपना इरादा जता दिया है कि वह आने वाले समय में कैसी दिल्ली बनाना चाहती है।
गौरतलब है कि इस बार का बजट परिव्यय 31.5 फीसद अधिक है। मगर सवाल यह है कि इस बढ़ी हुई राशि की व्यवस्था सरकार कहां से और कैसे करेगी। अलबत्ता उसने स्पष्ट कर दिया है कि वह दिल्ली को आत्मनिर्भर बनाने के साथ इसके बुनियादी ढांचे में बदलाव लाएगी। इसके लिए उसने बिजली-पानी और सड़क-सीवर सहित दस क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। वहीं वायु प्रदूषण से निपटने के लिए तीन सौ करोड़ का आबंटन कर साफ कर दिया है कि उसे नागरिकों की चिंता है। इसी के साथ यमुना सफाई की दिशा में कदम बढ़ाते हुए उसने अपना वादा निभाने की कोशिश की है।
वर्षों से भाजपा उठाती रही है मुद्दा
दिल्ली सरकार के इस बजट में हर वर्ग को तरजीह देने का प्रयास दिखता है। इस बार पूंजीगत व्यय को दोगुना किया गया है। मगर इस खर्च की पूर्ति कैसी होगी, सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है। दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा हमेशा गंभीर मुद्दा रही है। इसके लिए पूरी दिल्ली में पचास हजार सीसीटीवी कैमरे लगाने के साथ बस यात्रा के लिए महिलाओं को कार्ड जारी करने की पहल उचित ही है।
इस बजट में सरकार ने कुछ लक्ष्य तय किए हैं। यह एक बड़ा दायित्व है। भाजपा वर्षों से दिल्ली के लिए कई मुद्दे उठाती आई थी। अब उसे साकार करने का अवसर मिला है। अगर वह दिल्ली को वादों के अनुरूप शहर बना पाती है, तो यह वाणिज्य और निवेश के लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण बन जाएगा। इन सबके बावजूद सरकार को अपने वादे पूरे करने के लिए जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती रहेगी।