दिल्ली के निजी विद्यालयों में मनमाने तरीके से शुल्क बढ़ाए जाने पर सवाल उठते रहे हैं। अभी हाल ही में द्वारका में कई अभिभावकों ने सरकार की अनुमति के बिना एक विद्यालय पर शुल्क बढ़ोतरी का आरोप लगाया था। साथ ही दावा किया था कि बच्चों और उनके माता-पिता पर दबाव बनाने के लिए कुछ स्कूलों में अतिरिक्त कर्मी तैनात किए जाते हैं।
निजी विद्यालयों की निरंकुशता का मुद्दा अदालतों में भी उठता रहा है। ऐसा भी नहीं कि शिक्षा निदेशालय को वस्तुस्थिति मालूम न हो। सवाल यह है कि निजी विद्यालयों को मनमानी करने की छूट किसने दी?
कौन लोग हैं जो इन्हें अब तक शह देते रहे हैं? लगातार शिकायतें मिलने पर दिल्ली सरकार ने हाल ही में विधानसभा में दिल्ली स्कूल शिक्षा (पारदर्शिता निर्धारण और शुल्क विनियमन-2025) विधेयक पारित करने का निर्णय किया था, मगर किन्हीं कारणों से यह पेश नहीं किया जा सका था।
सरकार निजी विद्यालयों को अब जवाबदेह बनाना चाहती है
अब इस विधेयक को अध्यादेश के जरिए लागू करने का दिल्ली मंत्रिमंडल का फैसला एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इससे शुल्क प्रणाली में पारदर्शिता आएगी और अभिभावकों को भी बड़ी राहत मिलेगी। निजी विद्यालयों को अब जवाबदेह बनना होगा। वे अभिभावकों पर मनमाने तरीके से आर्थिक बोझ नहीं डाल सकेंगे।
हैरत की बात तो यह है कि निजी विद्यालयों में शिक्षा शुल्क के अतिरिक्त अन्य मदों में राशि जोड़कर कई वर्षों से वसूली की जाती रही है। विकास शुल्क के नाम पर अभिभावकों पर दबाव बनाया जाता है। मगर, अब इस पर रोक लग सकेगी।
गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मनमाना शुल्क बढ़ाने पर निजी विद्यालयों और दिल्ली शिक्षा निदेशालय को नोटिस जारी किए थे। इसमें दोराय नहीं कि बार-बार शुल्क बढ़ाए जाने से गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों पर नाहक ही आर्थिक बोझ पड़ता है। नया अध्यादेश लागू होने के बाद निजी विद्यालय निर्धारित सीमा से अधिक शुल्क नहीं वसूल सकेंगे।
इस अध्यादेश में ऐसे कई प्रावधान हैं, जिनसे अभिभावकों को चिंता से मुक्ति मिलेगी। शुल्क के नाम पर विद्यार्थियों को परेशान किए जाने पर पचास हजार के जुर्माने का प्रावधान निस्संदेह सरकार का सख्त कदम है।