जब यह लगभग साफ है कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण का गहराता संकट जितना मौसम की मार है, उससे ज्यादा यह सरकार की अनदेखी और लापरवाही का नतीजा है। वरना क्या कारण है कि पिछले कुछ वर्षों की तरह इस बार भी दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर होने को लेकर तमाम पूर्वानुमान सामने आए, लेकिन चंद औपचारिक घोषणाओं के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं किया गया, जिससे राजधानी की हवा को थोड़ा साफ रखा जा सके।

अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पिछले कई दिनों से लगातार दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक ‘खराब’ या फिर ‘बेहद खराब’ श्रेणी में बना हुआ है, लेकिन इससे निपटने के लिए ठोस कदम नहीं दिख रहे हैं। उल्टे कई स्तर पर स्थिति बिगड़ने के अनुमानों के बावजूद उदासीनता का आलम कायम है। सवाल है कि दिल्ली में सांस लेने के लिए भी हवा अगर सुरक्षित नहीं बची है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है और लगातार गहराती इस समस्या का समाधान क्या है।

यों हर वर्ष ठंड की आहट के साथ ही वायुमंडल में हवा के घनीभूत होने की वजह से धुआं सहित अन्य कारक दिल्ली में वायु गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। मगर इस वर्ष दिवाली के मौके पर सर्वोच्च न्यायालय की ओर से हरित पटाखों के मामले पर दी गई राहत का बेलगाम तरीके से दुरुपयोग किया गया।

नतीजतन, दिवाली के अगले ही दिन स्थिति जिस कदर बिगड़ी देखी गई, वह मौसम की वजह से कम और सरकार से लेकर आम लोगों के स्तर पर बरती गई बहुस्तरीय लापरवाही का नतीजा ज्यादा थी। उसके बाद से दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक लगातार या तो ‘खराब’ या फिर ‘बेहद खराब’ श्रेणी में बना हुआ है।

हालत यह है कि यहां के बहुत सारे लोगों की सेहत के सामने सांस से संबंधित परेशानियों सहित कई तरह की मुश्किलें पैदा हो रही हैं, लेकिन अब भी प्रदूषण को कम या दूर करने के लिए कोई ईमानदार इच्छाशक्ति नहीं दिखती। हालांकि दिल्ली में इस समस्या पर काबू पाने के मकसद से कृत्रिम बारिश कराने के लिए ‘क्लाउड सीडिंग’ कराने की खबर आई, लेकिन मौसम के साथ नहीं देने की वजह से वह भी कामयाब नहीं हुई।

सवाल है कि आज दिल्ली जिस हालत से गुजर रही है, यहां की हवा जिस स्तर तक खराब हो चुकी है, क्या उसके कारणों को सूचीबद्ध करके सार्वजनिक करने की कोशिश सरकार ने की है? उन कारणों पर काबू पाने के लिए क्या व्यवस्था की गई? हकीकत यह है कि प्रदूषण के चिंताजनक स्तर तक पहुंच जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट को केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से हलफनामा दर्ज करने के लिए कहना पड़ रहा है कि प्रदूषण को गंभीर होने से रोकने के लिए क्या कदम उठाने का प्रस्ताव है। शीर्ष अदालत में उन खबरों के बारे में भी जिक्र किया गया, जिनके मुताबिक दिल्ली भर में दिवाली के मौके पर सैंतीस में से केवल नौ वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्र के काम कर रहे थे।

इसकी जवाबदेही किस पर आती है? एक ओर, सुप्रीम कोर्ट स्थिति बिगड़ने से पहले कदम न उठाने को लेकर सवाल उठा रहा है, दूसरी ओर आज भी लगातार प्रदूषण से हवा और ज्यादा खराब होते जाने की खबर आ रही है। मगर ऐसा लगता है कि इसकी आशंका पहले से होने और इससे संबंधित पूर्वानुमानों के बावजूद सरकार के लिए यह कोई प्राथमिक चुनौती नहीं है।