Delhi Pollution: सर्दी का मौसम शुरू होने के साथ ही दिल्ली की आबोहवा अब बुरी तरह बिगड़ गई है। इस समय राजधानी घने कोहरे की चादर में लिपटी नजर आ रही है। जहरीली हवाओं से लोग बेहाल हैं। उनमें स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक कई इलाकों में गंभीर श्रेणी में पहुंच गया है। धूल-धुएं से बनी धुंध की दोहरी मार से दृश्यता कमजोर हो गई है। नतीजा यह है कि सड़कों पर वाहन रेंगते हुए दिखाई पड़ रहे हैं।
राजधानी में हालात गंभीर हैं। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सभी बाहरी शारीरिक खेल गतिविधियां बंद करने का फिर से निर्देश देना पड़ा है। जबकि पिछले महीने ही शीर्ष न्यायालय ने ऐसे आयोजनों पर सवाल उठाया था और इसे रोकने के लिए कहा था। फिर भी खेल गतिविधियां जारी रखी गर्इं, तो इससे साबित होता है कि लापरवाही किस हद तक बरती जा रही है।
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यह अदालत के निर्देशों की भी अवहेलना है। जाहिर है कि दिल्ली और इसके आसपास के राज्यों की सरकारें प्रदूषण को गंभीरता से नहीं ले रही हैं। हर दूसरे-चौथे दिन फौरी घोषणाएं जरूर की जा रही हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान नहीं निकाला जा रहा है। फिलहाल प्रदूषण को काबू में करने के लिए जो कदम उठाए गए हैं, इसके सार्थक परिणाम नहीं निकल रहे हैं। नतीजा यह कि दिल्ली वायु गुणवत्ता सूचकांक लगातार बिगड़ता जा रहा है।
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दरअसल, इस समस्या के गंभीर लक्षणों की सही मायने में पहचान नहीं की जा रही है। हालात कब तक सुधरेंगे, यह भी कोई नहीं बता रहा। राजधानी में लगातार प्रदूषण बने रहने की असल वजह क्या है, शायद यह कोई जानना नहीं चाहता और अगर कारणों की पहचान है, तो राज्य सरकारें गंभीरता से कदम उठाने से संकोच क्यों कर रही हैं?
दिल्ली में अभी अन्य राज्यों से आने वाले ट्रकों पर रोक है। निर्माण कार्य बंद करा दिए गए हैं। ग्रेप-चार के तहत पाबंदियां भी लागू हैं। बावजूद इसके प्रदूषण के स्तर को कम नहीं किया जा पा रहा है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? प्रदूषण के कारणों की पहचान कर उन्हें दूर करने के लिए ठोस उपाय लागू करने के साथ-साथ लापरवाही के लिए अब संबंधित विभागों की भी जवाबदेही तय करने की जरूरत है।
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