पिछले कुछ वर्षों से हवा में बढ़ते जहरीले रसायनों के चलते सांस की तकलीफ से लेकर सेहत संबंधी बहुस्तरीय समस्याएं न केवल हमारे देश, बल्कि दुनिया भर में चिंता का कारण बनी हुई हैं। आए दिन वायु गुणवत्ता में लगातार गिरावट और उसके बुरी तरह प्रदूषित होते जाने के मसले पर पर्यावरणविद् चेतावनी देते रहे हैं कि अगर समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वक्त में प्रदूषण से बिगड़ते हालात को संभालना असंभव हो जाएगा। मगर इस वर्ष एक बार फिर दीपावली के मौके पर इतने पटाखे जलाए गए कि देश के कई शहरों की वायु गुणवत्ता ‘बेहद खराब’ श्रेणी में चली गई।

अनदेखी के दुष्परिणाम किसे झेलने होंगे

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआइ 317 तक पहुंच गया। दिल्ली में पटाखों पर पाबंदी के बावजूद पूरे शहर में इसके बड़े पैमाने पर उल्लंघन के मामले सामने आए। हरियाणा और पंजाब के साथ-साथ देश के अन्य कई शहरों में भी इसी तरह की स्थिति रही। सवाल है कि तमाम शहरों-महानगरों में वायु गुणवत्ता में चिंताजनक गिरावट, इसके ‘बेहद खराब’ श्रेणी में जाने और उसकी वजह से होने वाली परेशानियों की अनदेखी के दुष्परिणाम किसे झेलने होंगे!

हालत यह है कि इस समस्या के लगातार गहराते जाने के बावजूद न तो सरकारों को इस पर लगाम लगाने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत महसूस हो रही है, न प्रदूषण और इससे उपजने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का भुक्तभोगी होने के बावजूद आम लोगों को अपने आप पर थोड़ा नियंत्रण रखने की जरूरत जान पड़ती है। खासकर पर्व-त्योहारों के मौके पर लोगों को सरकारी अपीलों और नियम-कायदों का उल्लंघन करने में हिचक नहीं होती।

विडंबना है कि ऐसे समय में सरकार भी सब जानते-बूझते हुए कभी आस्था के नाम पर, तो कभी किसी अन्य बहाने से इस मामले में बरती जाने वाली व्यापक लापरवाही की अनदेखी कर देती है। आखिर क्या वजह है कि हर वर्ष दीपावली के मौके पर पटाखों की वजह से वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है और अगले दिन इसका व्यापक असर देखे जाने के बावजूद लोग इसके प्रति सचेत नहीं होते, जबकि इसका खमियाजा उन्हें ही झेलना पड़ता है।