राजधानी दिल्ली में हुए कथित शराब घोटाले की जांच अब बहुकोणीय हो गई है। पहले प्रवर्तन निदेशालय ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इस मामले में गिरफ्तार किया था, अब केंद्रीय जांच एजंसी यानी सीबीआइ ने भी उन्हें हिरासत में ले लिया है। सीबीआइ का कहना है कि दिल्ली की आबकारी नीति बनाने में दक्षिण भारत का एक समूह शामिल था और उससे केजरीवाल जुड़े हुए थे।

मामले को सियासी हथकंडा करार दे रही है आम आदमी पार्टी

इस मामले में बड़ी साजिश का पता लगाने के लिए केजरीवाल का सबूतों से आमना-सामना कराना और उनसे पूछताछ जरूरी है। अदालत ने सीबीआइ की इस दलील को उचित मानते हुए केजरीवाल की तीन दिन की हिरासत मंजूर कर दी। माना जाता है कि सीबीआइ को कुछ पुख्ता सबूत हाथ लगे होंगे, तभी उसने हिरासत की मांग की। मगर हमेशा की तरह आम आदमी पार्टी इस मामले को सियासी हथकंडा करार दे रही है।

कुछ दिनों पहले दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत ने केजरीवाल को जमानत दे दी थी। उसने प्रवर्तन निदेशालय के पास केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ पुख्ता सबूत न होने को लेकर नाराजगी भी जताई थी। मगर प्रवर्तन निदेशालय ने उस जमानत आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में गुहार लगाई और जमानत पर स्थगन आदेश मिल गया। इसे लेकर अभी चर्चाएं चल ही रही थीं कि सीबीआइ ने केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया।

पूरा मामला रहस्य के पर्दे में है, जांच की जद में कुछ और नेता

दिल्ली शराब घोटाले की सच्चाई अभी रहस्य के पर्दे में है। आम आदमी पार्टी के कई नेता इसकी जांच की जद में आ चुके हैं। उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया लंबे समय से जेल में हैं। संजय सिंह जेल जाकर आ चुके हैं। कयास लगाए जाते हैं कि और भी कुछ नेताओं तक इस जांच की आंच पहुंच सकती है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को अवैध ठहराने की कानूनी लड़ाई चल रही है। उन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने आम चुनाव के दौरान प्रचार करने के लिए मोहलत दी थी, पर फिर उन्हें जेल जाना पड़ा। अब सीबीआइ ने एक नया सिरा पकड़ लिया है, तो केजरीवाल की रिहाई आसान नहीं लगती।

केजरीवाल ने अभी तक मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया है। चूंकि ऐसा कानूनी प्रावधान नहीं है कि किसी व्यक्ति को किसी आरोप में गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा देना अनिवार्य है, इसलिए उन्होंने अपने पद पर बने रहने का फैसला किया। मगर सार्वजनिक जीवन में सब कुछ कानून से नहीं चलता, जनभावनाएं भी महत्त्वपूर्ण होती हैं। आम लोगों की यही अपेक्षा रहती है कि अगर किसी बड़े पद का निर्वाह कर रहे व्यक्ति पर कोई गंभीर आरोप लगे, तो वह नैतिक आधार पर खुद को उस पद से अलग कर ले।

चूंकि कथित शराब घोटाला मामले को राजनीतिक रंग दे दिया गया है और इसे लेकर अभी तक कोई पुख्ता प्रमाण सामने नहीं आ सका है, इसलिए लोगों में भ्रम बना हुआ है। आम आदमी पार्टी और भाजपा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती रहती हैं। ताजा मामले में भी आम आदमी पार्टी का तर्क है कि केंद्र सरकार केजरीवाल को इस मामले में उलझाए रख कर सीखचों के पीछे रखने का प्रयास कर रही है।

मगर भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों को जब इस तरह सियासी रंग दे दिया और लंबे समय तक उलझाए रखा जाता है तो उससे आम लोगों का भरोसा कमजोर होता है। अगर सचमुच दिल्ली की आबकारी नीति गलत थी और उसके चलते कुछ लोगों को नाजायज लाभ पहुंचाया गया, तो इसकी सच्चाई जल्दी सामने आनी चाहिए। आम आदमी पार्टी से भी अपेक्षा की जाती है कि वह इस जांच में सहयोग करेगी।