दिल्ली की कानून व्यवस्था पर इससे बड़ा सवालिया निशान क्या होगा कि अति विशिष्ट इलाके में झपटमार एक महिला सांसद की चेन छीन कर भाग जाएं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम आदमी किस कदर असुरक्षित माहौल में रहने पर मजबूर है। सुरक्षा चाक-चौबंद होने के तमाम दावों के बावजूद दिल्ली में जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में झपटमारी, लूटपाट और हत्या की घटनाएं बढ़ी हैं, उससे पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठे हैं। यह हाल तब है जब दिल्ली में दो-दो सरकारें हैं और पुलिस सीधे केंद्र के नियंत्रण में है।

ताज्जुब है कि अपराधियों पर नजर रखने के लिए अत्याधुनिक तकनीकी संसाधन होने पर भी अपराधों पर काबू नहीं पाया जा सका है। अगर दिल्ली पुलिस में पर्याप्त बल की अब भी कमी है, तो इसे पूरा करने की जिम्मेदारी किसकी है? गौरतलब है कि दिल्ली के चाणक्यपुरी जैसे अति विशिष्ट इलाके में सोमवार की सुबह सैर के लिए निकलीं तमिलनाडु की लोकसभा सांसद आर सुधा सरेआम झपटमारी की शिकार हो गईं। पोलैंड दूतावास के पास से गुजरते समय झपटमार उनसे सोने की चेन छीन कर भाग गया। छीना-झपटी के क्रम में उनके गले में चोट भी आई।

पुलिस की कार्यशैली और उसके प्रभाव पर भी गंभीर सवाल

दिल्ली के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले इलाके में यह चौंका देने वाली घटना तो है ही, इससे पुलिस की कार्यशैली और उसके प्रभाव पर भी गंभीर सवाल उठते हैं। खासतौर पर ऐसे समय में, जब संसद सत्र चल रहा हो और इस दौरान दिल्ली के केंद्रीय हिस्से में सुरक्षा व्यवस्था सख्त मानी जाती है। मगर इस घटना के बाद यह कहा जा सकता है कि आम आपराधिक घटनाओं के समांतर दिल्ली में बहुस्तरीय सुरक्षा इंतजामों के घेरे वाले इलाके में भी अगर महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, तो देश के बाकी हिस्सों में क्या उम्मीद की जा सकती है?

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स्वाभाविक है कि इस घटना को गंभीरता से लेते हुए त्वरित जांच की उम्मीद की जानी चाहिए, लेकिन सवाल है कि कई दूतावासों वाले इलाके में भी पर्याप्त पुलिस बल की ऐसी मौजूदगी क्यों नहीं थी कि असामाजिक तत्त्वों से निपटा जा सके? अगर अति विशिष्ट क्षेत्र में अपराधी अपने मंसूबे में कामयाब हो रहे हैं, तो दिल्ली के दूसरे इलाकों में सड़कों पर आम आदमी की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।