दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे अप्रत्याशित नहीं कहे जा सकते। यह चुनाव शुरू से दो-ध्रुवीय था। भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच सीधी टक्कर थी। कांग्रेस ने जरूर दावेदारी की थी, मगर जैसे-जैसे चुनाव की सरगर्मी बढ़ती गई, उसे अहसास होने लगा था कि वह मुकाबले में नहीं है। इसका नतीजा यह हुआ कि उसे शिथिलता ने घेर लिया। भाजपा लंबे समय से आम आदमी पार्टी की कमजोरियों और अनियमितताओं को उजागर करती आ रही थी। इस तरह वह लोगों के मन में सत्ताविरोधी लहर पैदा करने में कामयाब भी हुई। हालांकि तमाम सर्वेक्षणों से यही पता चल रहा था कि दिल्ली की बड़ी आबादी आम आदमी पार्टी सरकार से बहुत नाखुश नहीं थी, मगर उनमें से काफी लोग इस बार बदलाव चाहते थे। आम आदमी पार्टी की साख को सबसे अधिक नुकसान कथित शराब घोटाले की वजह से हुआ।
इस मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जेल जाना पड़ा था। पार्टी लगातार दलील देती रही कि उसके नेताओं को झूठे आरोप में फंसाया गया है, मगर वह लोगों के गले नहीं उतरी। उन्होंने दागी नेताओं को शिकस्त दी। इन नतीजों से यह भी जाहिर हुआ है कि भाजपा के काम पर लोगों का भरोसा कमजोर नहीं हुआ है।
हालांकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार मुद्दों से अधिक मुफ्त की योजनाओं का शोर सुनाई दिया। आम आदमी पार्टी सरकार पहले से मुफ्त बिजली-पानी और शिक्षा-स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं का लाभ लोगों को पहुंचा रही थी। इसे लेकर बहुत सारे लोगों के मन में एक आकर्षण बना हुआ था। फिर सरकार ने चुनाव से ऐन पहले घोषणा कर दी कि वह हर महिला को इक्कीस सौ रुपए हर महीने देगी। इसके लिए पंजीकरण भी शुरू कर दिया। इसके जवाब में भाजपा ने ढाई हजार रुपए हर महीने देने की घोषणा कर दी। फिर यह भी भरोसा दिलाया कि जो योजनाएं पहले से चल रही हैं, अगर उसकी सरकार बनी तो, उन्हें बंद नहीं किया जाएगा।
इस वादे पर लोगों ने भरोसा किया। दूसरे कुछ राज्यों में भी भाजपा महिलाओं के लिए नगद राशि देने की योजनाएं चला रही है। जबकि पहले भाजपा खुद दिल्ली सरकार की मुफ्त की योजनाओं की मुखर आलोचना करती थी, मगर चुनाव आते ही उसने भी आम आदमी पार्टी को उसी के दांव से पटखनी देने का फैसला कर लिया और उसमें उसे कामयाबी भी मिली।
दिल्ली सरकार के पास शासन क्षेत्र सीमित है, उसे केंद्र के साथ तालमेल बिठा कर ही विकास योजनाओं पर आगे कदम बढ़ाना होता है। आम आदमी पार्टी सरकार और केंद्र के बीच शुरू से तनातनी बनी हुई थी, जिसके बीच अपने अधिकारों को लेकर कई बार केजरीवाल सरकार को अदालत तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा। उपराज्यपाल से उनके रिश्ते कभी समरस नहीं रहे। ऐसे में भाजपा की सरकार बनने के बाद वह खींचतान समाप्त हो जाएगी और उम्मीद बनी है कि कुछ बेहतर और उल्लेखनीय काम हो सकेंगे। मगर नई सरकार के सामने चुनौतियां भी कम न होंगी। आम आदमी पार्टी सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी जो काम किए हैं, उससे बेहतर काम करके दिखाना होगा। फिर शहर की साफ-सफाई, जलभराव आदि जैसी समस्याओं से निपटना हर वर्ष की चुनौती है। नगर निगम के साथ किस तरह तालमेल बिठा कर वह इन मसलों को हल करने का प्रयास करेगी, उसी आधार पर उसका जनाधार मजबूत हो सकता है।