आमतौर पर हर वर्ष दिवाली के बाद अगले दिन दिल्ली की हवा की दशा ऐसी हो जाती है कि बहुत सारे लोगों को सांस लेने तक में दिक्कत महसूस होने लगती है। इस वर्ष फिर स्थिति ऐसी हो गई कि मंगलवार को दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अन्य इलाकों में वायु की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में दर्ज की गई। यह स्थिति तब है, जब पिछले कई वर्षों से दिल्ली में प्रदूषण की समस्या को लेकर हर स्तर पर गंभीर चिंता जताई जाती रही है। यहां की हवा को स्वच्छ बनाने के साथ-साथ प्रदूषण का कारण बनने वाली गतिविधियों पर रोक के लिए सख्त कदम उठाने के दावे किए जाते हैं।

इस बार दिवाली के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने हरित पटाखे चलाए जाने की इजाजत दी थी, मगर इस छूट का किस हद तक बेजा इस्तेमाल किया गया, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिल्ली में कई जगहों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक को तीन सौ से ज्यादा पर दर्ज किया।

गौरतलब है कि वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआइ पर तीन सौ से चार सौ के बीच के आंकड़े को ‘बहुत खराब’ की श्रेणी में बताया गया है। दिल्ली में ठंड की शुरुआत के साथ ही हवा घनीभूत होने के कारण प्रदूषण का संकट गहराने लगता है। यह अमूमन हर वर्ष की हकीकत है, लेकिन हैरानी की बात है कि इन तथ्यों को जानते-बूझते हुए भी सरकार की ओर से जो कदम उठाए जाते हैं, वे या तो केवल नाम भर के लिए साबित होते हैं या फिर बेअसर रहते हैं।

दूसरी ओर, दिल्ली के ज्यादातर निवासियों को लगता है कि इस समस्या पर नियंत्रण पाने के मामले में उनकी कोई भूमिका नहीं है। नतीजतन, प्रदूषण की मार झेलने के बावजूद बहुत कम लोगों के भीतर यह दायित्वबोध दिखता है कि वे प्रदूषण के कारणों पर काबू पाने में सक्रिय भागीदारी करें। इसके उलट ज्यादातर लोग सरकार या अदालतों की ओर से मिली मामूली छूट के बाद इस कदर बेलगाम हो जाते हैं, मानो उन्हें प्रदूषण के संकट को और बढ़ाने की इजाजत मिल गई!

दरअसल, इस वर्ष प्रदूषण बढ़ाने में भूमिका के मद्देनजर पटाखे पर पाबंदी के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने थोड़ी राहत दी थी और हरित पटाखों के इस्तेमाल की अनुमति दी थी। मगर दिवाली से पहले ही ग्रैप चरण दो भी लागू किया गया था, ताकि प्रदूषण फैलाने वाले अन्य कारणों को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सके, लेकिन पटाखों की धूम में यह प्रयास बेअसर हो गया।

इसमें दोराय नहीं कि सर्दियों की आहट के साथ प्रदूषण की समस्या के गहराने में मौसम की भूमिका होती है। मगर इतना जरूर किया जा सकता है कि जिन वजहों से वायु की गुणवत्ता में तेज गिरावट होती है, उस पर काबू पाने के लिए एक ओर जहां सरकार सख्त कदम उठाए, वहीं यहां के लोग अपनी ओर से प्रदूषण का संकट बढ़ाने से बचें। इस बात की अहमियत नहीं समझ पाने का ही नतीजा यह है कि देश की राजधानी होने के बावजूद दिल्ली को आज विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाने लगा है।