राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हर साल सर्दियां आते ही यहां के बाशिंदों की सांसों पर संकट मंडराने लगता है। सरकार के तमाम दावों के बावजूद यहां की वायु स्वच्छ नहीं हो पा रही है। हवा में घुलता प्रदूषण का जहर आमजन की सेहत पर भारी पड़ रहा है। हालत यह है कि मंगलवार को दिल्ली का वायु गणवत्ता सूचकांक चार सौ अंक पार कर गया, जो गंभीर श्रेणी में आता है। दिल्ली से सटे नोएडा की पहचान तो देश के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में की गई।
दिल्ली हाई कोर्ट ने भी बुधवार को इस पर चिंता जताई और कहा कि ऐसी ‘आपात स्थिति’ में सरकार को वायु साफ करने वाले उपकरणों (एअर प्यूरीफायर) पर कर में छूट देने को लेकर विचार करना चाहिए। इसके लिए जीएसटी परिषद को जल्द से जल्द बैठक बुलाने का निर्देश दिया गया। ऐसे में सवाल है कि आखिर शासन एवं प्रशासन प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए कोई स्थायी एवं प्रभावी योजना लागू क्यों नहीं कर पा रहे हैं? इस बात पर गौर करना भी जरूरी है कि जो उपाय लागू किए गए हैं, क्या उन पर व्यावहारिक रूप से अमल हो पा रहा है या नहीं।
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यह लंबे समय से बहस का विषय रहा है कि आखिर दिल्ली में प्रदूषण क्यों बढ़ रहा है। इसके लिए कभी पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं को जिम्मेदार ठहराया जाता है, तो कभी दिल्ली-एनसीआर में बढ़ती वाहनों की संख्या तथा उद्योग और निर्माण एवं ध्वस्तीकरण कार्यों को वजह बताया जाता है। मगर इन दिनों तो पराली जलाने की घटनाएं भी बहुत कम सामने आ रही है, फिर दिल्ली की वायु गुणवत्ता का स्तर गंभीर श्रेणी तक कैसे पहुंच रहा है!
जाहिर है कि इसके पीछे कोई एक वजह नहीं हो सकती, इसलिए प्रदूषण के सभी स्रोतों का ईमानदारी से आकलन करने की जरूरत है। दूसरा, यह सवाल भी महत्त्वपूर्ण है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के सुझाव पर अगर वायु साफ करने वाले उपकरणों पर सरकार जीएसटी में छूट दे देती है, तो इसका लाभ भी आर्थिक रूप से सक्षम तबके तक ही सीमित रहेगा।
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बाकी आम लोगों को तो जहरीली हवा में ही सांस लेना पड़ेगा, उनके स्वास्थ्य की चिंता कौन करेगा। जबकि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय अपने एक आदेश में कह चुका है कि स्वच्छ हवा पर सभी नागरिकों का अधिकार है।
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का एक पहलू यह भी है कि मूल समस्या की जड़ तक जाने की बजाय इस पर राजनीति ज्यादा हावी होने लगी है। सियासी दल अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से पल्ला झाड़ने के लिए एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ते रहते हैं। दिल्ली में सत्तारूढ़ दल भाजपा का तर्क है कि आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए। वहीं, आम आदमी पार्टी का कहना है कि भाजपा अपनी जवाबदेही से ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के आरोप लगा रही है।
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सवाल है कि क्या इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप से प्रदूषण की गंभीर होती समस्या का समाधान निकल पाएगा? जहरीली हवा की वजह से जो लोग विभिन्न बीमारियों का शिकार हो रहे हैं, उसके लिए कौन जिम्मेदार है। समय आ गया है कि मानव जीवन की रक्षा को सर्वोपरि मानकर प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सामूहिक प्रयास किए जाएं, ताकि सभी नागरिक स्वच्छ हवा में सांस ले सकें।
