हाल के वर्षों में सरकार ने डिजिटल लेनदेन को कई स्तरों पर प्रोत्साहित और विस्तृत किया है। तकनीक का लाभ यही है कि वह लोगों के जीवन को सुगम बनाए, लेकिन अगर वह सुरक्षित नहीं है, तो उसके उपयोग को लेकर सवाल उठेंगे। आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं कि ठगी करने वालों ने किस तरह साइबर तंत्र में घुसपैठ कर ली है।
रोजाना बहुत सारे लोग इसका शिकार हो रहे हैं। हालत यह है कि न केवल डिजिटल लेनदेन के मामले में तकनीकी फर्जीवाड़े से लोगों को अपने पैसे गंवाने पड़ रहे हैं, बल्कि अब साइबर संजाल भयादोहन के जरिए ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसे अपराध के रूप में अपने पांव पसार रहा है। हाल के दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए, जिनमें किसी को फोन पर बातों में उलझा कर उसके खाते से पैसे गायब कर दिए गए। दूसरी ओर, फोन पर ही आडियो या वीडियो काल करके जाल में फंसा कर व्यक्ति को ‘डिजिटल अरेस्ट’ की हालत में ला दिया गया।
इंदौर में साठ करोड़ की साइबर ठगी
उसे कई घंटे या दिन तक एक कमरे में कैद रखा गया और उससे पैसे वसूले गए। अकेले इंदौर में बीते एक वर्ष में साइबर ठगी करके वहां के लोगों के साठ करोड़ से ज्यादा रुपए गायब कर दिए गए। वहीं, बिहार में पिछले एक वर्ष में राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइन नंबर पर ‘डिजिटल अरेस्ट’ के तीन सौ एक मामले दर्ज किए गए।
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ऐसी घटनाएं तब भी हो रही हैं, जब आर्थिक लेनदेन में डिजिटल माध्यमों के जोखिम को लेकर एक व्यापक चिंता उभर रही है और ‘डिजिटल अरेस्ट’ और साइबर ठगी के मसले पर खुद प्रधानमंत्री भी फिक्र जाहिर कर चुके हैं। सवाल है कि जब डिजिटल माध्यमों का विस्तार हो रहा है, बहुत सारे काम इंटरनेट पर निर्भर हो रहे हैं, तब आधुनिक तकनीकी के विकास के चरम दौर में भी साइबर सुरक्षा के आसान रास्ते क्यों नहीं निकाले जा रह
लोगों के बीच जागरूकता फैला रही सरकार
सही है कि इसके लिए सरकार की ओर से आम लोगों के बीच जागरूकता फैलाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन जरूरी यह भी है कि आधुनिक तकनीक के ही जरिए इस तरह के अपराधों को अंजाम देने वालों के बचने का कोई रास्ता न छोड़ा जाए।