किसी भी देश और समाज के विकास का एक जरूरी मानक यह भी है कि उसमें आम रिहाइश से लेकर सभी स्थानों पर स्वच्छता को सुनिश्चित करने को लेकर शासन कितना सक्रिय और सजग है और इसके प्रति आम लोग कितने जागरूक हैं। साफ-सफाई को लेकर नागरिक बोध एक निरंतरता में काम करता है, तभी कोई शहर एक मिसाल बन पाता है। इस लिहाज से देखें तो देश के स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 में एक बार फिर इंदौर ने जिस तरह आठवीं बार सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है, वह बाकी शहरों-महानगरों के लिए एक उदाहरण है कि सिर्फ व्यवस्थागत पहलू को दुरुस्त कर दिया जाए, तो न केवल इस मामले में सबसे आगे रहा जा सकता है, बल्कि ऐसी जगहों पर होने वाला विकास वास्तव में अपना महत्त्व स्थापित करता है।

गौरतलब है कि इस वर्ष इंदौर को सुपर लीग में शामिल किया गया था। यानी इस श्रेणी में सिर्फ वही शहर शामिल थे, जो अब तक हुए सर्वेक्षणों में पहले, दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे हैं। इस बार सुपर लीग की नई श्रेणी बनने के बावजूद इंदौर ने बाजी मारी।

दस लाख से ज्यादा आबादी में पहले स्थान पर रहा अहमदबाद

इसके अलावा, दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में गुजरात का अहमदबाद शहर पहले स्थान पर रहा। खास बात यह है कि स्वच्छता मानकों पर हर वर्ष इंदौर का नाम सुर्खियों में रहता आया है। मगर इस वर्ष इसके प्रतिस्पर्धी भी दिखने शुरू हो गए हैं और आबादी के मानक के मुताबिक बनाए गए अलग-अलग वर्गों के तहत भोपाल, लखनऊ, मीरा भायंदर, विलासपुर, जमशेदपुर, देवास, करनाल जैसे कई अन्य शहरों ने भी स्वच्छ शहरों की सूची में अपनी जगह बनाई।

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निश्चित तौर पर स्वच्छता के विस्तार की कड़ियां स्वागतयोग्य हैं और देश की छवि के लिए यह अच्छा हैं, लेकिन ध्यान रखने की जरूरत है कि स्वच्छता सर्वेक्षण की सूची में स्थान बनाने के साथ-साथ इस मामले में निरंतरता कायम रहे। समस्या यह है कि सर्वेक्षण के मानकों पर किसी शहर को सबसे स्वच्छ बनाने की घोषणा तो कर दी जाती है, लेकिन किसी जगह अगर कचरा बिखरा पड़ा हो, गंदगी की सफाई को लेकर आम लोगों के भीतर कोई सजगता नहीं दिखे, नागरिक बोध का अभाव हो तो ऐसे में सवाल उठने स्वाभाविक हैं।