शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के शासनाध्यक्षों के परिषद की तेईसवीं बैठक में मंगलवार को चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने जिन बातों की वकालत की, अगर उस पर अमल को लेकर भी वे इतने ही गंभीर होते तब भारत की समस्या शायद कुछ कम हो पाती। लेकिन अफसोस यह है कि चीन और पाकिस्तान की ओर से आए दिन जिस तरह की हरकतें की जाती हैं, उससे ऐसा लगता नहीं है कि वे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाहिर अपनी राय को लेकर उतने ही प्रतिबद्ध हैं।
खासतौर पर भारत को लेकर इन दोनों देशों की ओर से कूटनीतिक मोर्चे से लेकर सीमावर्ती इलाकों पर जैसी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है, उसके मद्देनजर इनकी ऐसी सदिच्छाएं सवालों के घेरे में आती हैं। दरअसल, एससीओ की बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसके सदस्य देशों से क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित किए जाने का आह्वान किया और आर्थिक सुधार को गति देने के लिए व्यावहारिक सहयोग की वकालत की। दूसरी ओर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का कहना था कि आतंकवाद के कई सिर वाले राक्षस से पूरी ताकत और दृढ़ता के साथ लड़ा जाना चाहिए।
जाहिर है, एक अहम अंतरराष्ट्रीय मंच पर दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के इन बयानों को अगर इसी संदर्भ में देखा जाए और उसे जमीन पर उतारने को लेकर वे सचमुच ईमानदार भी हों तो दक्षिण एशिया के इस हिस्से में एक जटिल समस्या का समाधान निकल सकता है। लेकिन यह छिपी बात नहीं है कि व्यवहार में चीन और पाकिस्तान के भीतर भारत को लेकर कैसे आग्रह हैं और सीमावर्ती इलाकों में कैसी अवांछित हरकतें की जाती रही हैं?
एक ओर चीन लद्दाख या अरुणाचल प्रदेश में अनधिकृत घुसपैठ से नहीं हिचकता है, तो दूसरी ओर अपनी सीमा में स्थित ठिकानों से गतिविधियां संचालित करने वाले संगठनों की ओर से आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने से लेकर भारतीय सीमा के भीतर अवैध घुसपैठ कराने तक की पाकिस्तान की हरकतें छिपी नहीं रही हैं। सवाल है कि भारत के सामने अमूमन हर समय ऐसी मुश्किल पेश करने का मकसद क्या होता है! अगर चीनी सेना भारतीय भूभाग में अवांछित गतिविधियां करती है या फिर जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के पीछे पाकिस्तान का हाथ पाया जाता है तो इसका क्या मतलब निकलता है?
सवाल है कि भारत के प्रति एक खास दुराग्रहपूर्ण रुख रखते हुए भी चीन की इस सदिच्छा का क्या अर्थ रह जाता है कि एससीओ के देशों के बीच क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित हो और वे आर्थिक सुधार को आगे बढ़ाने में कोई व्यावहारिक सहयोग दें। फिर पाकिस्तान को अगर लगता है कि आतंकवाद के कई सिर वाले राक्षस से पूरी ताकत और दृढ़ता से लड़ा जाना चाहिए तो क्या उसे सबसे पहले इस मसले पर भारत की नीतियों और जरूरत को स्वीकार नहीं करना चाहिए? यह छिपा नहीं है कि भारतीय सीमा में आतंकी दखलंदाजी को परोक्ष सहयोग देने वाला पाकिस्तान खुद भी आतंकवाद का शिकार है। वहां भी आए दिन आतंकी हमलों में लोग मारे जाते हैं।
लेकिन इस मसले का कूटनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए पाकिस्तान भूल जाता है कि आतंकवाद का सामना करने के लिए भारत को अपना हर वाजिब विकल्प अपनाने का अधिकार है। जरूरत इस बात की है कि अगर चीन क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा या फिर पाकिस्तान आतंकवाद से निपटने को लेकर सचमुच गंभीर हैं तो इस मसले पर एससीओ में कही अपनी बातों पर सचमुच अमल को लेकर ईमानदार इच्छाशक्ति के साथ काम करें। ये ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर चीन और पाकिस्तान अगर ईमानदारी से आगे बढ़ें तो उन्हें भारत का भी सहयोग मिल सकता है।