संतुलित एवं पौष्टिक आहार, स्वच्छता, प्रदूषण रहित वातावरण और सकारात्मक सोच जैसे तत्त्व ही स्वस्थ जीवन का आधार होते हैं। मगर हमारी बदलती जीवनशैली में इन तत्त्वों का अभाव साफ देखा जा सकता है। इसका असर बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सब पर पड़ रहा है। यही वजह है कि अब बच्चों और किशोरों में भी कई तरह के शारीरिक एवं मानिसक विकार पैदा हो रहे हैं। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से हाल में देशभर के बच्चों के स्वास्थ्य पर जारी की गई रपट में भी कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।

इसमें कहा गया है कि पांच से नौ वर्ष की आयु के एक-तिहाई से अधिक बच्चे रक्त में ज्यादा वसा जमा हो जाने की समस्या से ग्रसित हैं, जो भविष्य में हृदय रोग, मधुमेह और अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है। ये आंकड़े सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को उजागर करने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि हमारी आधुनिक जीवनशैली को लेकर एक गंभीर चेतावनी भी है।

पूर्वोत्तर राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित

इस रपट से पता चलता है कि पहले जिन रोगों का खतरा अधेड़ और वृद्ध लोगों को होता था, उनकी जद में अब बच्चे भी आने लगे हैं। बच्चों के रक्त में ज्यादा वसा की समस्या से जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। यह वास्तव में दुखद स्थिति है कि पश्चिम बंगाल में 67 फीसद से अधिक, सिक्किम में 64 फीसद, नगालैंड में 55 फीसद, असम में 57 फीसद और जम्मू-कश्मीर में 50 फीसद बच्चों में यह समस्या पाई गई है।

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जाहिर है कि इस समस्या का एक कारण हमारे खानपान का बदलता स्वरूप और परिवारों में इसके प्रति लापरवाही भी है। घर के बजाय बाहर के भोजन और डिब्बाबंद खाद्य सामग्री पर बढ़ती निर्भरता का असर बच्चों की सेहत पर भी पड़ रहा है। यही नहीं, रपट में यह तथ्य भी सामने आया है कि देश के लगभग पांच फीसद किशोर उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली इस मामले में शीर्ष पर है। ऐसे में जरूरत है भौतिक संसाधनों के पीछे भागने के बजाय स्वस्थ जीवनशैली को अपनाने की, ताकि इस तरह के विकारों को पनपने का मौका ही नहीं दिया जाए।