अब यह सियासी रिवायत-सी बनती गई है कि जब भी किसी राजनेता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, तो उसे सही साबित करने के लिए आंदोलन खड़ा हो जाता है। जब भी जांच एजंसियां किसी नेता को पूछताछ के लिए बुलाती हैं, तो उसके पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक सड़कों पर उतर आते हैं। इसके चलते घंटों सड़कें बाधित रहती हैं, नाहक लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
उन्हें रोकने के लिए पुलिस को अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है। इसका ताजा उदाहरण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआइ द्वारा आबकारी घोटाला मामले में पूछताछ के लिए बुलाया जाना और फिर पूरे दिन दिल्ली में अव्यवस्था बने रहना है। इसके पहले जब उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को पूछताछ के लिए बुलाया गया था, तब भी ऐसा ही हुआ था।
सिसोदिया पहले पूरे हुजूम के साथ राजघाट गए, फिर पूछताछ के लिए हाजिर हुए। यही तरीका केजरीवाल के समय भी अपनाया गया। पूछताछ के लिए जाने से पहले उन्होंने प्रेस के सामने जांच एजंसियों पर दबाव में काम करने का खुल कर आरोप लगाया। भाजपा को निशाने पर लिया और केंद्र सरकार को चुनौती दी कि वह चाहे कितने भी नेताओं को गिरफ्तार कर ले, आम आदमी पार्टी का मनोबल टूटेगा नहीं।
विचित्र है कि जो अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं, वही अब भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में हैं। दिल्ली सरकार पर नई आबकारी नीति लागू करके भारी मात्रा में धन कमाने का आरोप है। मनीष सिसोदिया के पास आबकारी विभाग की जिम्मेदारी थी, उन्हें इस घोटाले के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है। अब अरविंद केजरीवाल पर आरोप है कि उनकी सहमति से यह घोटाला किया गया।
सीबीआइ को इससे संबंधित तथ्य हाथ लगे होंगे, तभी उसने इतना बड़ा कदम उठाया। यह शायद पहली बार है कि किसी मुख्यमंत्री को पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार के आरोप में सीबाआइ ने तलब किया। बिना किसी ठोस आधार के जांच एजंसी इतना बड़ा कदम नहीं उठा सकती थी। मगर अब माहौल कुछ ऐसा बन गया या बना दिया गया है कि जब भी किसी मामले में जांच एजंसियां पूछताछ करती हैं, तो उसे केंद्र के इशारे पर की जा रही कार्रवाई कह कर शोर मचाया जाने लगता है। सवाल है कि कोई आरोपी खुद इस तरह की दलील देकर कैसे किसी आरोप से बरी हो सकता है।
आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ सदा से जंग छेड़ती रही है, फिर उसके नेताओं को अपने ऊपर लगे ऐसे आरोपों से बचने का प्रयास क्यों करना चाहिए। उन्हें सीबीआइ के सवालों का जवाब देकर साबित करना चाहिए कि सचमुच वे पाक-साफ हैं। हालांकि अरविंद केजरीवाल सीबीआइ के समक्ष पेश हुए, मगर केंद्रीय जांच एजंसियों के कामकाज पर चर्चा के लिए विधानसभा का विशेष सत्र भी बुला लिया।
विचित्र है कि जब भी आबकारी घोटाले की बात होती है, तो दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी के नेता शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियां गिनाने लगते हैं। अगर वे सचमुच बेगुनाह हैं, तो जांच में भी बेगुनाह साबित होंगे ही, इसे लेकर इतना वितंडा खड़ा करने की कोई जरूरत समझ नहीं आती। दूसरों की अनियमितताओं पर तो खूब चिल्ला-चिल्ला कर भाषण देते हैं, मगर जैसे ही खुद पर अंगुली उठती है, तो बेचारा-सा बन कर कहना शुरू कर देते हैं कि नाहक उन्हें परेशान किया जा रहा है। उनसे कानूनी कार्यवाहियों में सहयोग की अपेक्षा की जाती है।