मुंबई में पर्यटन के लिए निकले यात्रियों को क्या पता था कि वे हादसे की नौका पर सवार हैं! बुधवार को हुई दुर्घटना ने एक बार फिर कई सवाल खड़ा कर दिए हैं, जिसमें घोर बदइंतजामी उजागर हुई है। इंजन परीक्षण के लिए जा रहा नौसेना का पोत अचानक नियंत्रण खो देगा, शायद इसकी कल्पना न तो इसके चालकों ने की होगी और न पर्यटकों को ले जा रही नौका के चालक सदस्यों ने। मगर इस घटना में जिस तरह की खामियां और लापरवाही सामने आई है, वह गंभीर है।

क्षमता से अधिक बैठे थे यात्री

दुर्घटना से पहले यह नौका गेटवे आफ इंडिया से पर्यटकों को लेकर एलिफेंटा द्वीप जा रही थी। उस समय इस पर एक सौ दस से अधिक यात्री सवार थे। जबकि नौका की क्षमता अस्सी यात्रियों की थी। सवाल है कि निर्धारित संख्या से अधिक यात्रियों को ले जाने की अनुमति किसने दी? संयोग की बात है कि हादसे के तुरंत बाद समुद्री पुलिस, तटरक्षक बल और नौसेना के बचाव दल के साथ मछुआरों ने भी आगे आकर निन्यानबे पर्यटकों को डूबने से बचा लिया। अगर जरा भी देरी हुई होती, तो कई और यात्रियों की जान चली जाती। दुखद है कि तीन नौसैनिकों और दस नागरिकों को नहीं बचाया जा सका।

यात्रियों को सामान की तरह लादा

यात्रियों को सामान की तरह लाद कर ले जाने वाली नौका का संचालन करने वाली कंपनी अगर यात्रियों की निर्धारित संख्या का नियम तोड़ने पर सख्ती दिखाती और नौका पर हर यात्री के लिए जीवनरक्षक जैकेट न रखने जाने पर परिचालन कर्मियों से जवाब-तलब करती, तो शायद यह नौबत नहीं आती। समुद्र में पोत की टक्कर से नौका पलटने पर आखिर यात्री अपनी जान कैसे बचाते? हादसे में बचे पर्यटकों ने शिकायत की कि नौका पर उनके लिए पर्याप्त जीवनरक्षक जैकेट नहीं थे।

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यात्रियों की सुरक्षा की चिंता किए बिना नाव किस आधार पर चलाई जा रही थी? जाहिर है, ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए यात्रियों के जीवन को जोखिम में डालने वाली नौका कंपनियों को भी कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। प्रशासन ने अब नाव पर सवार होने वाले सभी यात्रियों के लिए जीवनरक्षक जैकेट बेशक अनिवार्य कर दिया हो, लेकिन ऐसे कदम हादसे के बाद उठाने के बजाय अगर नियमित सुरक्षा इंतजामों की निरंतर जांच और निगरानी हो, तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।