चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है, जो संविधान के अनुसार देश में चुनाव प्रक्रिया का संचालन करता है। संवैधानिक प्राधिकार होने के नाते आयोग से उम्मीद की जाती है कि वह निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम करेगा। देश में नागरिकों के मताधिकार को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी इसी की है। ऐसे में सवाल है कि अगर चुनाव आयोग कानून और मानदंडों के मुताबिक अपना काम कर रहा है तो उसकी कार्यप्रणाली को संदेह की नजर से क्यों देखा जा रहा है?

आयोग पर निष्पक्षता और पारदर्शिता नहीं बरतने के आरोप बार-बार क्यों लग रहे हैं? बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) की प्रक्रिया पर सवाल उठने की वजह क्या है? इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय ने भी गंभीरता से लिया है। हालांकि शीर्ष अदालत ने उम्मीद जताई है कि बिहार में चुनाव आयोग एसआइआर में कानून का पालन कर रहा होगा। साथ ही आगाह भी किया है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो इस पूरी प्रक्रिया को रद्द कर दिया जाएगा। इससे साफ है कि चुनाव आयोग पर विश्वास की नींव अब कमजोर होती नजर आ रही है।

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बिहार में सबसे पहले एसआइआर की प्रक्रिया के समय को लेकर सवाल उठे थे। विपक्षी दलों का तर्क था कि राज्य में कुछ माह बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और यहां से एसआइआर की शुरुआत करना चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर संदेह पैदा करता है। इसके बाद देश एवं राज्य की नागरिकता के प्रमाण के लिए तय किए ग्यारह दस्तावेजों में आधार कार्ड को शामिल नहीं करने पर आयोग सवालों के घेरे में आ गया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग को इस विषय पर विचार करने को कहा था, लेकिन आयोग ने यह तर्क देते हुए इनकार कर दिया कि आधार कार्ड पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इसके बाद शीर्ष अदालत को इस पर नए सिरे से निर्देश देना पड़ा, तब आयोग ने बिहार में अंतरिम व्यवस्था के रूप में आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण दस्तावेजों की सूची में शामिल किया। यहां गौर करने वाली बात है कि आज बैंक खाता खुलवाने से लेकर रसोई गैस के पंजीकरण के लिए आधार जरूरी है, तो फिर उसकी विश्वसनीयता को स्वीकारने में संकोच क्यों है। और फिर इस बात की क्या गारंटी है कि आयोग ने नागरिकता प्रमाण के तौर पर जिन ग्यारह दस्तावेजों को शामिल किया है, उनमें कोई फर्जीवाड़ा नहीं हो सकता है।

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सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक प्राधिकार है और उसे देश भर में एसआइआर की प्रक्रिया शुरू करने से रोका नहीं जा सकता। सवाल सिर्फ यह है कि इस प्रक्रिया में कानून का पालन हो रहा है या नहीं। चुनाव आयोग अब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी में है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि बिहार में जो आशंकाएं पैदा हुई हैं, उनके निराकरण के बिना आयोग आगे कैसे बढ़ सकता है।

इसमें दो राय नहीं कि मतदाता सूची को साफ-सुथरा बनाना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। सूची से उन लोगों के नामों को हटाना जरूरी है, जिनकी मौत हो चुकी है या जिनके पास वैध मतदाता पहचान पत्र नहीं हैं। मगर, इस कवायद में यह ध्यान रखना भी जरूरी है कोई पात्र नागरिक मतदान के अधिकार से वंचित न हो। इसका उत्तरदायित्व भी चुनाव आयोग का ही है।