बिहार में बीते दो-तीन दिनों में हत्या की कई घटनाओं ने एक बार फिर मौजूदा सरकार के उन दावों को आईना दिखाया है, जिसमें वह अपनी सबसे बड़ी ताकत सुशासन और अपराध पर काबू करने को बताती रही है। विडंबना यह है कि जघन्य अपराधों के बढ़ते ग्राफ के बावजूद सरकार सब कुछ अच्छा होने के प्रचार पर जोर देती रही और दूसरी ओर जमीन पर हालत और बिगड़ती चली गई है। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि शुक्रवार देर रात पटना के केंद्र में स्थित बेहद सुरक्षित माने जाने वाले इलाके में शहर के एक कारोबारी की गोली मार कर हत्या कर दी गई और हत्यारा आराम से फरार भी हो गया।
हत्या की घटना जिस जगह हुई, वहां से जिलाधिकारी का आवास और पुलिस थाना काफी नजदीक है। गौरतलब है कि पटना में जिस कारोबारी की हत्या की गई, करीब छह वर्ष पहले उनके बेटे को भी अपराधियों ने मार डाला था। एक अन्य घटना में शुक्रवार को ही राज्य के सीवान जिले के मलमलिया चौक पर अपराधियों ने सरेआम पांच लोगों को तलवार से काट डाला, जिसमें तीन लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई और दो बुरी तरह घायल हो गए।
20 साल से सत्ता में काबिज हैं नीतीश कुमार
ऐसा लगता है कि राज्य की कानून-व्यवस्था पूरी तरह लाचार हालत में है, अपराधी बेखौफ हैं और सरकार के हाथ में शायद कुछ भी नहीं रह गया है। वरना क्या वजह है कि जघन्य अपराध एक तरह से राज्य में आम होते जा रहे हैं और पुलिस या कानून का डर कहीं नहीं दिखता है। राज्य में हत्या की घटनाओं और इनकी प्रकृति को देखते हुए स्वाभाविक ही ये सवाल उठेंगे कि ऐसे में आम लोग अपनी सुरक्षा को लेकर क्या सोचें।
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बिहार में नीतीश कुमार की सरकार जितने वर्षों से सत्ता पर काबिज है, उतने में अब वह यह भी सफाई देने की हालत में नहीं है कि उसके कामकाज पर अतीत की छाया है। यह एक तरह से अपनी नाकामी को स्वीकार करने जैसा होगा। इसके बावजूद राज्य में अपराधों की तस्वीर पर जब भी सवाल उठते हैं, तो सरकार में शामिल दल अतीत के कथित ‘जंगल राज’ की याद दिलाने लगते हैं। यह पूछा जाना चाहिए कि मौजूदा दौर में राज्य में जघन्य आपराधिक घटनाओं की जो हालत है, अपराधी बेलगाम दिखते हैं, तो इसे किस तरह के राज के रूप में देखा जाएगा!