बिहार के मुजफ्फरपुर में एक नाबालिग लड़की से दरिंदगी और फिर उसके इलाज में लापरवाही पूरी व्यवस्था को शर्मसार करने वाली है। बलात्कार और बर्बरता झेलने के बाद जीवन के लिए संघर्ष कर रही मासूम ने रविवार को पटना के एक बड़े सरकारी अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस घटना ने मानवीय संवेदना को झकझोर दिया है। राज्य में कानून व्यवस्था पर तीखे सवाल उठ रहे हैं। गौरतलब है कि पिछले हफ्ते मुजफ्फरपुर के उसके गांव में इस मासूम लड़की को दरिंदगी का शिकार बनाया गया था।
आरोपी ने न केवल उससे बलात्कार किया, बल्कि धारदार हथियार से हमला कर उसे मारने की भी कोशिश की थी। पीड़िता को बीते शनिवार को गंभीर हालत में पटना मेडिकल कालेज एवं अस्पताल लाया गया था। परिजनों का दावा है कि अस्पताल में बिस्तर उपलब्ध न होने का हवाला देकर जिंदगी और मौत से जूझती उनकी बेटी को कई घंटे तक एंबुलेंस में ही इंतजार कराया गया। मामले के तूल पकड़ने पर उसे अस्पताल में भर्ती किया गया, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
अस्पताल प्रबंधन ने बच्ची की स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया
यह घटना वास्तव में अस्पताल प्रशासन के साथ-साथ समूचे सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर करती है। सवाल है कि बच्ची जिस हालत में थी, उसके लिए इतने बड़े अस्पताल में क्या तत्काल इलाज की व्यवस्था नहीं की जा सकती थी। क्या अस्पताल प्रबंधन ने बच्ची की स्थिति को गंभीरता से लेने में इसलिए लापरवाही बरती कि वह कमजोर और गरीब तबके से थी? अव्वल तो कानून-व्यवस्था उस बच्ची को एक सुरक्षित जीवन देने में नाकाम रही, फिर जब उसके साथ बर्बरता हुई तो समय पर इलाज उपलब्ध कराने के मामले में भी उसकी त्रासद उपेक्षा की गई।
बिहार में बढ़ते अपराध के बीच यह घटना एक झलक भर है कि वहां अपराधियों का दुस्साहस क्यों बढ़ रहा है और उसकी मार समाज के कमजोर वर्गों को क्यों झेलनी पड़ती है। सवाल है कि इलाज में देरी के लिए कौन जिम्मेदार है और ऐसा क्यों होने दिया गया। इसकी जवाबदेही तय कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। बिहार में मौजूदा सरकार सुशासन की दुहाई देती नहीं थकती, लेकिन हकीकत इसके उलट दिख रही है।