ऐसा लगता है कि बिहार में अपराधी बेलगाम हो चुके हैं, लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और सरकार लाचार है। राज्य की राजधानी में भी सरेआम गोलियां चल रही हैं और हत्याओं का एक सिलसिला-सा चल पड़ा है। जाहिर है, कानून व्यवस्था इस समय पूरी तरह अनुपस्थित लगती है। अपराधियों में कानून का खौफ नहीं दिख रहा और वे किसी की हत्या कर आसानी से फरार हो जाते हैं। यह एक तरह से घोर अराजकता का माहौल है। जबकि कुछ महीनों बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं। यह कानून व्यवस्था ध्वस्त होने का भी संकेत है कि राजधानी के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले हिस्सों में भी अपराधी किसी की हत्या करके आराम से निकल जाते हैं।

फिल्मी अंदाज में हत्या, बिना डर भागे अपराधी

गुरुवार को एक अस्पताल के सघन चिकित्सा कक्ष में फिल्मी अंदाज में कुछ बदमाश आए और एक व्यक्ति की हत्या करके हथियार लहराते बिना रोकटोक के निकल गए। इससे पहले पटना में एक व्यवसायी और फिर एक वकील सहित लगातार कई हत्याओं ने कानून-व्यवस्था की हकीकत को सामने रख दिया था। इसके बावजूद सरकार और पुलिस को सजग होने की जरूरत महसूस नहीं हुई।

पटना पारस अस्पताल के ICU में 5 बदमाशों ने चंदन मिश्रा को मारी गोली, पिस्टल लहराते हुए फरार, चेहरे पर नहीं था मास्क

सवाल है कि क्या यह बिहार की पुलिस की नजर में कानून व्यवस्था की कोई समस्या नहीं है? राज्य में हत्या की ताबड़तोड़ घटनाओं के पीछे क्या कारण है और अपराधी इस हद तक बेलगाम क्यों दिख रहे हैं? अपराध का यह सिलसिला कैसे और किन वजहों से बेरोकटोक चल रहा है? कथित सुशासन के दावों के बीच अगर पुलिस की कार्यप्रणाली चुस्त है, तो आपराधिक तत्त्व खुद को इतना बेखौफ क्यों पा रहे हैं?

हैरानी की बात यह है कि इस चिंताजनक परिदृश्य में बिहार के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मई से जुलाई के बीच वारदात बढ़ने की बात कर रहे हैं। फसल का मौसम न होने से खाली बैठे किसानों पर आरोप मढ़ने का उनका बयान न केवल अफसोसनाक है, बल्कि यह भी दर्शाता हैं कि उच्च पदों पर बैठे लोग किस हद तक गैरजिम्मेदार तरीके से बचाव कर सकते हैं। गंभीर मामलों से सख्ती से निपटने के बजाय बेहद उथली दलील देकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश को किस तरह देखा जाएगा?