बिहार में विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव के पहले चरण में गुरुवार को जिस पैमाने पर लोगों ने बढ़-चढ़ कर मतदान किया, उससे साफ है कि राज्य में लोकतंत्र को लेकर एक जरूरी सजगता है और मतदान के लिए लगी लंबी कतारों में उसी की अभिव्यक्ति दिखी। इस बार आंकड़ों के मुताबिक 64.66 फीसद मतदान हुआ, जिसे राज्य में हुए चुनावों में एक कीर्तिमान माना जा रहा है।
इससे साबित होता है कि बिहार भले ही कई मानकों पर विकास की दौड़ में पिछड़ गया है, लेकिन वहां आज भी लोगों के भीतर अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर अतिरिक्त जागरूकता है और आखिर यही हक राज्य को विकास की राह पर आगे बढ़ने का सबसे अहम कारक बनेगा।
गौरतलब है कि पहले चरण के लिए राज्य के अठारह जिलों के एक सौ इक्कीस विधानसभा क्षेत्रों में मतदान हुआ। बाकी सीटों पर दूसरे चरण में 11 नवंबर को मतदान होगा। नतीजे 14 नवंबर को घोषित होंगे। लेकिन इसकी संभावना जताई जा रही है कि अगले चरण में भी मतदान का यही रुख बना रहेगा।
अब स्वाभाविक ही ऐसे आकलन सामने आने लगे हैं कि क्या लोगों का इतनी भारी संख्या में मतदान के लिए निकलना सत्ता विरोधी रुझान का संकेत हो सकता है। वहीं सत्ताधारी पक्ष का अपना अनुमान है कि मतदाताओं का समर्थन फिर से उन्हें ही मिलेगा। नतीजा चाहे जो हो, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कई अहम कारकों ने ज्यादा मतदान के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनार्इं।
मसलन, बिहार में चुनाव से पहले जिस तरह मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया चली और बड़ी संख्या में लोगों के नाम बाहर हुए, उसमें मतदाताओं के भीतर अपने आपको सूची में बनाए रखने के लिए अतिरिक्त चिंता पैदा हुई। इसे उन्होंने मतदान में हिस्सा लेकर जाहिर किया।
वहीं, राज्य में छठ पर्व की वजह से दूसरे राज्यों से भी लोग भारी तादाद में अपने गांव पहुंचे होंगे और मतदान की तारीख उनकी शहर वापसी से ज्यादा दूर नहीं थी। इसके साथ अलग-अलग दलों की ओर से किए गए वादों और दी गई सुविधाओं का सवाल भी कसौटी पर है। एक ओर, सत्ताधारी राजग की ओर से मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत दस हजार रुपए महिलाओं के खाते में दिए गए, वहीं इंडिया गठबंधन ने महिलाओं के लिए माई-बहन योजना और हर परिवार को सरकारी नौकरी के अलावा अन्य वादे किए हैं।
आम चुनाव हो या राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव, यह स्थिति एक समस्या के रूप में देखी गई है कि बहुत सारे मतदाता ऐसे भी होते हैं, जो मतदान के लिए ज्यादा रुचि नहीं दिखाते हैं। ऐसे लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करने को लेकर निर्वाचन आयोग को अलग से जागरूकता अभियान चलाना पड़ता है। जबकि किसी भी नागरिक को चुनाव में मतदान को अपनी एक जवाबदेही के रूप में देखना चाहिए।
हालांकि यह भी एक पक्ष हो सकता है कि किसी अनिवार्य वजह से कोई व्यक्ति मतदान न कर सके, लेकिन यह एक आम प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए। बिहार में लोगों के सामने सत्ता और विपक्ष के वादों की कसौटी जरूर है, लेकिन पहले चरण में भारी मतदान एक तरह से चुनावों में लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए जरूरी सजगता और भागीदारी का एक अहम उदाहरण है।
