बिहार में पिछले कुछ समय से जघन्य अपराधों के आंकड़ों और निरंतरता में जैसी तेज बढ़ोतरी हुई है, वह बताती है कि राज्य सरकार ने जितने बड़े पैमाने पर कथित सुशासन का प्रचार किया था, वह हकीकत से काफी दूर है। हाल के दिनों में राज्य में हत्या की कई घटनाएं सुर्खियों में रहीं। यह तब है, जब राज्य सरकार हर कुछ दिन बाद यह दावा करती दिखती है कि वहां जंगलराज के बाद उसने सुशासन कायम किया। सवाल है कि पिछले करीब दो दशक से सत्ता में रहने के बावजूद अगर अपराधों की बढ़ती संख्या, उसकी प्रकृति और निरंतरता पर रोक नहीं लग सकी, तो इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

हालत यह है कि अब अपराधियों के निशाने पर बच्चे भी आने लगे हैं। इसी महीने की शुरुआत में पटना के जानीपुर इलाके में दो बच्चों को जला कर मार डाला गया था। अब बीते पंद्रह अगस्त को भी पटना के इंद्रपुरी इलाके में दो बच्चे घर से खेलते-कूदते ट्यूशन के लिए निकले और बाद में सड़क किनारे खड़ी कार में दोनों के शव मिले।

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सवाल है कि यह किस तरह का सुशासन है कि न तो अपराधों पर लगाम लग पा रही है, न ही अपराध हो जाने के बाद पुलिस कुछ कर पा रही है। इंद्रपुरी में दो बच्चों के शव मिलने के बाद पुलिस को जहां सक्रिय होकर जल्द से जल्द मामले को सुलझाने और अपराधियों को पकड़ने की कोशिश करनी चाहिए थी, वहीं वह अब तक किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सकी है। नतीजतन, वहां सोमवार को सरकार और पुलिस के रुख से भड़के लोगों की भीड़ अराजक हो गई और उसने पुलिस के वाहन को भी आग के हवाले कर दिया।

निश्चित रूप से लोगों का इस तरह हिंसक हो जाना समस्या के समाधान के रास्ते को बाधित करता है, मगर सवाल है कि आखिर पुलिस और प्रशासन की नींद तभी क्यों खुलती है, जब कोई मामला तूल पकड़ लेता है। अफसोसनाक यह है कि अपराधी बेखौफ होकर अपराधों को अंजाम दे रहे हैं, वहीं राज्य की सरकार और पुलिस मानो लाचार खड़ी है। बिहार में विधानसभा चुनावों में अब ज्यादा वक्त नहीं है। सवाल है कि सरकार क्या अपराधों की ऐसी ही तस्वीर के साथ जनता से समर्थन की उम्मीद कर रही है!