बांग्लादेश से आकर असम में पनाह पाए या फिर अवैध रूप से रह रहे लोगों की नागरिकता का सवाल लंबे समय से उलझा हुआ था। सर्वोच्च न्यायालय ने अब स्पष्ट कर दिया है कि ऐसे लोगों की नागरिकता तय करने के मकसद से संविधान में जोड़ी गई धारा 6ए पूरी तरह जायज है। दरअसल, केंद्र सरकार का कहना था कि यह धारा नागरिकता और भाषा-संस्कृति संबंधी संविधान की मूल भावना का उल्लंघन करती है।

24 मार्च, 1971 के बाद आए लोगों को अवैध माना जाएगा

बांग्लादेश से आकर बसे लोगों की वजह से असम में जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ा है, वहां की भाषा और संस्कृति भी प्रभावित हुई है। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि ऐसे लोगों की वजह से वहां की भाषा और संस्कृति पर बुरा असर पड़ा है। किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की मौजूदगी का मतलब यह नहीं है कि संविधान के अनुच्छेद 29(1) के तहत भाषाई और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है। यानी अब 1 जनवरी, 1966 से पहले आए लोगों को स्वत: भारत का नागरिक मान लिया जाएगा और उसके बाद 24 मार्च, 1971 के बीच आए लोगों को नागरिकता के लिए पंजीकरण कराना होगा। उसके बाद आए लोगों को अवैध माना जाएगा और सरकार उन्हें वापस भेजने का प्रबंध करेगी।

दरअसल, केंद्र सरकार राष्ट्रीय नागरिक पंजिका तैयार करना चाहती है। उसमें असम सरकार लगातार बांग्लादेश से आई मुसलिम आबादी का सवाल उठाती रही है। उसका कहना है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से राज्य के कई जिलों में उनकी आबादी बहुसंख्यक हो गई है। मगर उनकी पहचान करने में उसे कठिनाई पेश आती रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा था कि राज्य सरकार ऐसे नागरिकों की पहचान कर बताए कि कितने विदेशी नागरिक वहां रह रहे हैं और कितनों को वापस भेजा गया है। मगर सरकार उसका आंकड़ा पेश करने में विफल रही।

बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला पुराना है, इसे लेकर वहां करीब छह वर्ष तक आंदोलन चला था। उसे शांत करने के मकसद से तत्कालीन केंद्र सरकार ने 1985 में बांग्लादेश सरकार और असम छात्र संगठन से बातचीत कर 6ए का प्रावधान किया था। बांग्लादेश सरकार अब भी भारत में अवैध रूप से रह रहे अपने नागरिकों को वापस लेने को तैयार है। मगर यह तभी संभव है, जब असम सरकार पारदर्शी तरीके से उनकी पहचान करे। देखना है, यह काम वह कैसे और कब तक कर पाती है।

बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने का मुद्दा इसलिए विवादास्पद हो गया था कि ठीक से पहचान किए बिना उन्हें पृथकता केंद्रों में भेजा जाने लगा। उनमें से कई ऐसे नागरिक भी बताए जाते हैं, जो भारतीय नागरिकता कानून के दायरे में आते हैं, मगर उनके पास पहचान के जरूरी दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे नागरिकों को बांग्लादेश भेजने से उनके सामने नई दुश्वारियां पैदा हो सकती हैं। वहां जाकर उन्हें नागरिकता न मिली तो वे कहीं के नहीं रह जाएंगे।

किसी संकट के समय मानवीय आधार पर दूसरे देश के नागरिकों को पनाह देना हर देश का धर्म है, पर किसी लोभ में अवैध तरीके से आकर लोग रहने लगें, तो उससे न केवल देश की बुनियादी सुविधाओं पर बोझ बढ़ता है, बल्कि सुरक्षा संबंधी चुनौतियां भी पेश आने लगती हैं। ऐसे में बांग्लादेशी घुसपैठियों को असम में रहने देने के पक्ष में शायद ही कोई हो, पर बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए उन्हें वापस भेजना भी उचित नहीं कहा जा सकता।