चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश के विधानसभा चुनावों के नतीजे ठीक-ठीक क्या होंगे, यह तो गुरुवार को ही पता चलेगा, पर एग्जिट पोल के आंकड़ों के आधार पर संभावित तस्वीर का एक मोटा अनुमान हाजिर है। विभिन्न टीवी चैनलों और सर्वे एजेंसियों के आंकड़ों में थोड़ा-बहुत फर्क है, जो कि स्वाभाविक भी है, पर अंतिम निष्कर्षों में ज्यादातर की राय मेल खाती है। इस सब के मुताबिक इन चुनावों में सबसे ज्यादा फायदा भारतीय जनता पार्टी को होने जा रहा है, और सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को। असम में भाजपा या भाजपा गठबंधन की सरकार बनने की संभावना है। पिछले लोकसभा चुनाव के पहले तक पूर्वोत्तर में भाजपा हमेशा हाशिये की ही पार्टी रही। पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य की बागडोर भाजपा के हाथ में आना, जाहिर है उसके लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। पिछले साल दिल्ली और बिहार के चुनावों में मिली पराजय के मद्देनजर भी भाजपा के लिए असम का नतीजा बहुत महत्त्वपूर्ण होगा। असम की जीत पार्टी कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने में मददगार होगी। लेकिन जिन राज्यों में भाजपा मुख्य प्रतिद्वंद्वी नहीं थी, यानी बंगाल, केरल और तमिलनाडु में, वहां भी उसकी ताकत बढ़ने के ही संकेत हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के हाथ से असम ही नहीं, केरल भी फिसलने वाला है। यों इन चुनावों को सत्ता-विरोधी रुझान के कोण से भी देख सकते हैं। बंगाल को छोड़ दें, तो एग्जिट पोल के संकेत संबंधित राज्य सरकारों के प्रति जन असंतोष की अभिव्यक्ति भी हैं। यही नहीं, बंगाल में ममता बनर्जी की वापसी के आसार भले हों, पर उनकी भी पार्टी यानी तृणमूल कांग्रेस की सीटें इस बार घटती दिख रही हैं। असम में तरुण गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस पंद्रह साल से राज कर रही थी। ऐसे में राज्य के लोगों में बदलाव की आकांक्षा रही होगी, जिसका फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा है।
एग्जिट पोल के मुताबिक केरल की कमान यूडीएफ यानी संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे के हाथ से निकल कर एलडीएफ यानी वाम लोकतांत्रिक मोर्चे के हाथ में चली जाएगी। तमिलनाडु में भी सत्तारूढ़ पार्टी अन्नाद्रमुक को झटका लगेगा और इसके फलस्वरूप वहां द्रमुक व कांग्रेस के गठबंधन के सत्ता में आने की संभावना है। पर केरल और तमिलनाडु में यह कोई नई बात नहीं होगी। केरल में 1977 को छोड़ दें, तो हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन होता आया है; इसी तरह तमिलनाडु में 1989 से हर चुनाव में सरकार बदल जाने का ही जनादेश आया है। केरल और तमिलनाडु में नई बात नए किरदारों की बढ़ती भूमिका है। केरल में भाजपा और बीडीजेएस के गठबंधन ने, अनुमान है कि कम से कम एक तिहाई विधानसभा सीटों पर, मुकाबलों को त्रिकोणीय बना दिया, और इससे वहां के नतीजों को लेकर पूर्वानुमान करना, पहले के चुनावों की तुलना में कहीं अधिक कठिन हो गया। तमिलनाडु में भी एक तीसरा मोर्चा था। केरल और तमिलनाडु में, मुख्य पार्टियों के खिलाफ बने नए गठबंधन ज्यादा सीटें भले हासिल न कर पाएं, पर वे दोनों तरफ के वोट-प्रतिशत कम कर सकते हैं। तमिलनाडु में तो कुछ और भी अहम बदलाव संभावित हैं। मसलन, द्रमुक की कमान अब शायद करुणानिधि की जगह पूरी तरह उनके बेटे स्टालिन के हाथ में चली जाएगी। वाममोर्चे के लिए ये चुनाव मिश्रित परिणाम वाले माने जाएंगे। केरल में उसकी वापसी होगी, पर बंगाल से मलाल ही मिलेगा। कांग्रेस की ताकत घटना और बंगाल में वाम की वापसी न होना, राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के लिए राहत की बात होगी