यह विचित्र है कि एक तरफ तो सरकारी विभागों में खाली पदों पर लंबे समय तक भर्ती की प्रक्रिया शुरू नहीं की जाती और जहां शुरू भी होती है वहां कभी पर्चाफोड़ गिरोह सक्रिय हो जाते हैं, तो कभी संबंधित महकमे के आला अधिकारी और मंत्री तक रिश्वत लेकर भर्तियां करते पाए जाते हैं। शायद ही कोई ऐसा राज्य हो, जहां सरकारी भर्तियों में रिश्वतखोरी और पक्षपात के मामले उजागर न हुए हों।

ऐसे भी अनेक उदाहरण हैं, जब भर्तियों में व्यापक अनियमितता के आरोप के चलते उन्हें रद्द करना पड़ा। कई मामलों में मंत्री तक जेल गए। पश्चिम बंगाल का शिक्षक भर्ती घोटाला इसका ताजा उदाहरण है। करीब आठ साल पहले वहां सरकारी स्कूलों में पचीस हजार सात सौ तिरपन शिक्षकों और गैरशिक्षकों की भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित की गई थी, जिसमें लगभग तेईस लाख अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया था।

मगर जब नतीजे आए तो उसमें कई तरह की गड़बड़ियां पाई गई थीं। जिन अभ्यर्थियों के पास न्यूनतम अर्हता भी नहीं थी, वे वरीयता सूची में शीर्ष बीस की श्रेणी में आ गए थे। कई ऐसे लोगों को भी नौकरी दे दी गई, जिन्होंने भर्ती परीक्षा पास ही नहीं की थी। कम अंक पाने वाले भी वरीयता क्रम में ऊपर पहुंच गए थे।

इस मामले की शिकायत दो अभ्यर्थियों ने अदालत में की थी, जिसकी सुनवाई करते हुए मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी गई। उस जांच में धनशोधन का मामला उजागर हुआ और प्रवर्तन निदेशालय ने मामले को अपने हाथ में ले लिया था। उस संबंध में प्रदेश के शिक्षामंत्री पार्थ चटर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया।

फिर उनके और करीबी लोगों के ठिकानों पर छापे पड़े तो उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी को भी शिक्षक भर्ती घोटाले में संलिप्त पाया गया था। उन्हें भी गिरफ्तार किया गया। इन दोनों के ठिकानों से भारी मात्रा में नगदी, जेवर और जायदाद के कागज मिले थे। आरोप था कि उसमें अभ्यर्थियों से पांच से पंद्रह लाख रुपए रिश्वत लेकर भर्ती किया गया था।

अब कोलकाता उच्च न्यायालय ने उस भर्ती प्रक्रिया को रद्द कर दिया और नए सिरे से भर्ती शुरू करने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि उस प्रक्रिया के तहत भर्ती होकर नौकरी करने वालों को पिछले सात-आठ वर्षों का सारा वेतन वापस करना पड़ेगा। इस तरह उन लोगों की मनोस्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है कि उच्च न्यायालय का फैसला अवैध है और वह उस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी तथा शिक्षकों की नौकरी सुरक्षित कराने का प्रयास करेगी।

वर्षों पहले हरियाणा में भी इसी तरह शिक्षक भर्ती घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को जेल जाना पड़ा था। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के कार्यकाल में हुई शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को मायावती ने अनियमितता का आरोप लगाते हुए रद्द कर दिया था। शिक्षकों की भर्ती के अलावा पुलिस भर्ती, पटवारी भर्ती, व्यापार मंडल भर्ती आदि में इसी तरह तरह अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं।

इस तरह सरकारी महकमों के लोग जरूर अपनी जेबें भर लेते हैं, मगर खमियाजा आखिरकार उन मेधावी युवाओं को भुगतना पड़ता है, जो वर्षों मेहनत और लगन से तैयारी करते हैं, मगर उनका हक कोई और ले उड़ता है। आखिर सरकारें इतने उदाहरणों के बावजूद क्यों कोई पारदर्शी और विश्वसनीय भर्ती प्रक्रिया नहीं बना पाई हैं।